शनिवार, 18 जुलाई 2015

मौन फिर से

विपक्ष कितनी सुकून देने वाली जगह होती है , वहां रह कर आप हर नीति का विरोध करते हैं चाहे वो जनहितैषी क्यों न हो। आप विरोध को ही विपक्ष धर्म मान लेते हैं और ४० साल के अपने विपक्ष कार्यकाल से विपक्ष की एक गलत परिभाषा गढ़ देते हैं।  जनता में तब निराशा का संचार होता है जब आप खुद सत्ता में आते हैं और वो ही राह अपनाते हैं जिनका पुरज़ोर विरोध किया करते थे।
बात घोटालों की है , जब कांग्रेस के घोटालों को जनता ने लूट माना और बीजेपी को मौका दिया तो एक आशा के साथ उनलोगों नें भी मतदान किया जो इस छद्म लोकतान्त्रिक व्यवस्था में अपना विश्वास खो चुके थे।  उन्हें मोदी जी में एक बहुत ही स्वाभिमानी और देशभक्त नेतृत्व दिखा जिसकी आज भी देश को ज़रूरत है। जब मोदी जी ने कहा कि ना खाऊंगा ना खाने दूंगा तो सबमे एक सकारात्मकता का संचार हो गया और लगा की आशाएं बस पूरी होने ही वाली हैं।
विगत कुछ महीनों में जिस प्रकार से एक के बाद एक घोटाले सामने आ रहे हैं लगता है मोदी सरकार बहुत जल्द कांग्रेस के द्वारा स्थापित भ्रष्टाचार के मापदंडों को पछाड़ देगी। तीन मुख्यमंत्री खुद सवालों  घेरे में हैं , सुषमा स्वराज जैसी कद्दावर नेत्री भी सवालों के जवाब देनें के लिए उपलब्ध नहीं है। शिक्षा मंत्री की शिक्षा का ही विवादस्पद होना एक बहुत बड़ी परेशानी की ओर इंगित करता है। व्यापम घोटाला जिसमें गवाहों की विवादस्पद मौत हो रही है जिसे जनता आसानी से हत्या मान रही है उसमें भी जवाब और उचित कार्यवाही अपेक्षित है।
उपरोक्त सभी प्रकरणों में हमारे बोलने वाले प्रधानमंत्री की चुप्पी बड़ी खलती है क्युकी वोट एक प्रभावशाली और जवाबदेह नेतृत्व के लिये दिया गया था। व्यापम में एक पूरी पीढ़ी के अरमानों और मेहनत का दमन हुआ है और जो लोग काबिल नहीं है उनके हाथों में जनता का जीवन है।

सरकारी महकमों में जब तक एक चपरासी और बाबू उपरवालों के कलेक्शन एजेंट बनकर लूटना बंद नहीं करेंगे तब तक खाना न सही इसे चखना ज़रूर माना जाएगा। अगर भ्रष्टों को सज़ा अब भी नहीं हुई तो क्या फायदा होगा हमें एक मज़बूत सरकार चुनने का।  पूर्ण बहुमत का फायदा ही क्या जब हर वादा जूमला साबित हो जाए।

देश देख रहा है क्युकी ये नई ६५% युवाओ की पीढ़ी परिणाम चाहती है , जल्द से जल्द।  पिछले साठ सालों की दुहाई इसके गले नहीं उतरेगी।  बाकि आपकी मर्ज़ी क्युकी परिवर्तन की राह में कब लोग विकल्प तलाशनें लगें कोई नहीं जानता। 

धन्यवाद !

रविवार, 1 मार्च 2015

दिल्ली गाथा !

नमस्कार ! अलोकप्रियता कभी भी हो सकती है।  आज लोग प्रक्टिकल भी है और आशावादी भी।  मोदी जी की जो आंधी चली थी उसमे आशावाद का बड़ा योगदान था।, मोदी जी आशावाद का प्रतीक थे और अब भी है।  उनके भाषणों में समस्याओं के साथ साथ समाधान का समावेश रहता था लोग प्रेरित भी हुए।  पर दिल्ली के नतीजे उन्ही आशावादी लोगों के प्रक्टिकल होने का सबूत है जिन्होंने मोदी जी को बाजे गाजे के साथ सत्ता सौपी थी।  आज लोगों को काम करने के वादे के साथ साथ काम करते हुए भी दिखना चाहिए वरना उनमे एक संशय पैदा होते देर नहीं लगाती।

शास्त्रों एवं इतिहास की बात करें तो अहंकार भारतीयों को बिलकुल पसंद नहीं है इसी लिए कांग्रेस युग का अंत हुआ।  बीजेपी भी सभी ओर अपनी विजय पताका फहराते हुए जब दिल्ली पहुंची तो वो ही अहंकार दिखा जो कुछ महीनों पहले जनता नकार चुकी थी।  एक छोटी सी पार्टी को कुचल डालने की ख्वाहिश और अतिआत्मविश्वास से अभियान से शुरुआत ही गलती रही।  सारे सांसद जो अपने क्षेत्र की जनता के प्रतिनिधि है जनता को छोड़ कर दिल्ली में प्रचार को बुलाने पड़े यहाँ तक की करदाताओं के पैसे से काम करने वाले मंत्रियों का देश छोड़ कर दिल्ली में प्रचार करना किसी को नहीं भा रहा था।  ताबूत में आख़री कील जब लगी जब खुद माननीय प्रधानमंत्री इसमें कूद पड़े।

आम आदमी पार्टी (आप) के कहीं से चुनाव न लड़ दिल्ली पर ध्यान केंद्रित करने को उनका डर मान लेना भी बड़ी गलती रही।आप ने ज़मीन पर खूब मेहनत की और क्युकी नीयत पर किसी को कभी शक नहीं था, लोगों का झुकाव स्वाभाविक था।  ४९ दिन की सरकार के ताने मारने वाले शायद दिल्ली से बाहर वाले ही होंगे क्युकी दिल्लीवासियों को सरकार का वो ट्रेलर बहुत पसंद आया और वो पूरी फिल्म देखना चाह  रहे थे। बीजेपी और आप के कार्यकर्ताओं में बहुत बड़ा अंतर है जो इस चुनाव में साफ़ हुआ। आप में ऐसा कोई कार्यकर्ता नहीं है जिसकी जीविका का साधन राजनीती है।  कोई छात्र था , कोई दुकानदार , कोई नौकरी से कुछ समय की छुट्टी ले आया था , ऐसे लोगों के प्रति झुकाव स्वतः ही है।

भारतीयों को नकारात्मकता पसंद मानाने वालों के मुंह  पर भी करारा तमाचा ही है क्युकी जहाँ एक तरफ अपने पद की गरिमा को ताक पर रख  प्रधानमंत्री और मंत्री नकारात्मक भाषण दे रहे थे वहीँ वो जो झूठे और आधारहीन आरोप लगा रहे थे वो उनके खुद के परिप्रेक्ष में ज्यादा जंच रहे थे। पैसे का हिसाब मांगने के पहले अगर खुद के पैसों का हिसाब दे देते तो बात अलग होती। आप स्थिर दिखी और जनता से संवाद भी बखूबी किया वो भी बहुत कम पैसों में।   किरण बेदी को अचानक एक ईमानदार चेहरे के रूप में लाना भी दिल्ली बीजेपी में ईमानदार नेताओं की शून्यता का परिचायक साबित हुई और फिर किरण बेदी का रवैया करेला दूजा नीम चढ़ा साबित हुआ।

राजनीतिक दलों को समझना होगा की जहाँ गरीब और मध्यम  वर्ग आज़ादी के ६६ सालों  बाद भी सड़क , पानी और बिजली जैसी समस्याओं से लड़ रहा है वहां व्यक्तिगत आरोप और जहरीली साम्प्रदायिकता का असर नहीं होता।  ये वो ही लोग थे जिन्होंने मोदी जी को पूरा दिल्ली दिया था और अब भी वो ही है जो बीजेपी को ऐतिहासिक न्यूनतम सीट तक ले गई। जो हमारे मुद्दों की बात करके एक रोडमैप देगा उसे सत्ता देंगे , निचोड़ यही है।  भूखे पेट भजन नहीं होते। मीडिया को पूरी तरह खोल के रख दिया फिर भी बड़ी बेशर्मी से आज भी भरमाने में लगी है। कितना डिसकनेक्ट है , कितनी दूरी है।  अनुरोध ये ही है की अहंकार छोड़ दो , अब नहीं चलेगा।  शायद इसी वजह से केजरीवाल ने जीतने के बाद अपने पहले भाषण में अहंकारी ना हो जाने का आवाह्न किया।

जितनी जल्दी समझे उतना अच्छा है देश के लिए वार्ना चुनाव और भी है।

धन्यवाद ! 

शनिवार, 3 जनवरी 2015

विकास पथ !

नमस्कार सभी को।  काफी समय हुआ कुछ लिखे , देश में बहुत कुछ हो रहा था और मै उस बहुत कुछ में 'विकास ' खोज रहा था।  साधु , साध्वी, महंतो की उच्चस्तरीय भाषा से ओतप्रोत मै सोच रहा था की क्या सच में ये भगवान से मिलवाते होंगे या पथप्रदर्शक होंगे , जिनके होंगे उनके साथ मेरी अपार सहानुभूति। फिर मैंने देखा लोग अपने घर वापस आ रहे है , सोचा शायद वादे के अनुसार कश्मीरी पंडित घर पहुंच गए होंगे पर यहाँ घर का एक और पर्यायवाची सुनने को मिला। गांधीजी की तस्वीर अपने दफ्तर में लगाने वाले हमारे लोकप्रिय प्रधानमंत्रीजी के साथी तो गांधीजी के हत्यारे को देशभक्त ठहरा रहे थे। शायद वो गाँधीयो के विरोध की बयार में बह निकले , गलती भी नहीं है क्युकी  उन्हें ये ही सिखाया गया है । जब भी कोई विवादस्पद बयान आता मै उसके माफीनामे के इंतज़ार में रहता और अधिकतर मौकों पर मै निराश नहीं हुआ , सन्देश के विस्तार का ये गजब तरीका देखा क्युकी हमारे देश के पार्टी सपोर्टर उस घृणित बयान को माफीनामा आने से पहले तक इतना फैला चुके होते हैं की उसे वापस लेने की गुंजाईश का होलिका दहन हो चूका होता है और ब्रेकिंगन्यूज़ पिपासु हमारे देश की जनता बस बयान पे अटकी रह जाती है.

हमारी पवित्र गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने की बात पर मै थोड़ा चौंक  गया , मै  सोचता था हमारी गीता सारे विश्व के लिए सन्देश है तो उसे देश की सीमा में बाँधने की क्या ज़रुरत आन पड़ी।  संविधान तो पहले से ही राष्ट्रीय  ग्रन्थ है ही। गीता भी राष्ट्रीय हो गई तो क्या हम भी युद्ध कर के हर समस्या का समाधान करेंगे ? पांडवो के पास तो भगवान थे हम तो भगवान के इंतज़ार में है। संस्कृत में जैसे तैसे पास होने वाले हम छात्र उसे कितना बोल पाएंगे ये बड़ा पेचीदा विषय होगा। अंतराष्ट्रीय बाजार में तेल के भाव जब ४०% तक सस्ते हुए तो मै  बड़ी आशा से ४०% की कीमतों में गिरावट के सपने संजोने लगा पर ये क्या ये तो बस ६ -७ रूपये पर सिमट गया, पर चलो कम  तो हुआ , हम भारतीयों को कौन सा हमारा हक़ मिलने की आदत है इस एहसान का ही शुक्रिया कर मै आगे बढ़ा।

जो लोग तेल के दाम बढ़ने का हवाला दे कर दूध और सब्ज़ियों जैसी चीज़े महंगी होने की दुहाई दे रहे थे मुझे उनका ख़याल आया और मै चला कुछ खरीदने। पर यहाँ सब्ज़ी रानी और दूध राजा नीचे आने को तैयार नहीं थे , जो दुर्गति पहले थी वो अब भी है।  किसी ने ये भी कहा की भाव सिर्फ बढ़ने के लिए होते है कम होने के लिए नहीं , काश मेरी पगार भी इन राजा रानी से कुछ सीख पाती। और फिर हमारे देश में तो तथाकथित एम आर पी से ऊपर बेचने का रिवाज़ है , लेना हो तो लो वरना रास्ता नापो।   मुझमे अब भी काफी उम्मीदें थी , पता था अब पड़ौसी मुल्क कुछ मज़ाल न कर पाएगा पर मेरे सपने अगले ही दिन टूटे जब देश की एकमात्र देशभक्त प्रजाती हमारी  सेना के जवानों के शहीद होने की खबर से सामना हुआ , यहाँ भी कुछ न बदला।

हम भारतीय आशावान है और अपनी समस्याओं के समाधान की आशा हमेशा रहेगी।  हम आशावान जीते हैं और आशा में ही परलोक सिधार जाते हैं। स्वच्छ भारत की आशा तो मुझे निकट भविष्य में ही पूरी होती दिखाई दी और मै भी मोदीजी के साथ इस अभियान में अपनी तरफ से व्यक्तिगत योगदान के लिए आतुर हो गया।  वैसे तो मै  पहले से सफाई प्रिय  था पर अब और जागरूक हो गया था। पर ये क्या मेरे कई  अज़ीज़ दोस्त जो मोदी भक्त कहलाने में गर्व महसूस करते है और सारी घृणा फैलाने वाली खबरों को अपने शिक्षा पे खर्च हुए पैसे का उपयोग कर सोशल मीडिया पर प्रचारित करते हैं , शायद इस अभियान से विमुख हैं या दीवारों पर अपनी पीक से चित्रकारी करना उनका शौक है। एम एफ  हुसैन का हिन्दू वर्ज़न भी तो होना चाहिए। हर सार्वजनिक कोना इनके लिए पीकदान या शौचालय है , पर हाँ सार्वजनिक स्थान पर किसी बालिग़ लड़के लड़की को देख कर इनके धर्म पर आंच आ जाती है और ये धर्मरक्षा के लिए हिंसा कर डालते है।

अरे ! ये सब पढ़ते पढ़ते क्या आप मुख्य मुद्दे से भटक गए या भूल गए ? अगर हाँ तो बस मेरी स्थिति भी ये ही हो गई है।  मै भी निकला था डेवलपमेंट उर्फ़ विकास के  पहले  कदम की तलाश में , काले धन के आकड़ों में अपने चुकाए टैक्स के वादे के अनुसार हिस्से के लिए , चोरों  के नाम के लिए , पुराने आरोपियों को जेल में देखने की पहल की आशा में , किसानों के समृद्धि की ओर कदम की आस में (बजट कटौती नहीं), भ्रष्टाचार मुक्त और सामाजिक सौहार्द्र युक्त समाज की आस में , उत्तरदायी सरकारी नौकरों और सवालों के जवाब देने वाले नेताओ की तलाश में।

किसी अतिमहत्वाकांक्षी और मोहक मेनिफेस्टो सा लगता है न जिसे देख हम ५ साल के लिए बटन दबा आते हैं ? समय मिले तो सोचो ।

धन्यवाद !