विपक्ष कितनी सुकून देने वाली जगह होती है , वहां रह कर आप हर नीति का विरोध करते हैं चाहे वो जनहितैषी क्यों न हो। आप विरोध को ही विपक्ष धर्म मान लेते हैं और ४० साल के अपने विपक्ष कार्यकाल से विपक्ष की एक गलत परिभाषा गढ़ देते हैं। जनता में तब निराशा का संचार होता है जब आप खुद सत्ता में आते हैं और वो ही राह अपनाते हैं जिनका पुरज़ोर विरोध किया करते थे।
बात घोटालों की है , जब कांग्रेस के घोटालों को जनता ने लूट माना और बीजेपी को मौका दिया तो एक आशा के साथ उनलोगों नें भी मतदान किया जो इस छद्म लोकतान्त्रिक व्यवस्था में अपना विश्वास खो चुके थे। उन्हें मोदी जी में एक बहुत ही स्वाभिमानी और देशभक्त नेतृत्व दिखा जिसकी आज भी देश को ज़रूरत है। जब मोदी जी ने कहा कि ना खाऊंगा ना खाने दूंगा तो सबमे एक सकारात्मकता का संचार हो गया और लगा की आशाएं बस पूरी होने ही वाली हैं।
विगत कुछ महीनों में जिस प्रकार से एक के बाद एक घोटाले सामने आ रहे हैं लगता है मोदी सरकार बहुत जल्द कांग्रेस के द्वारा स्थापित भ्रष्टाचार के मापदंडों को पछाड़ देगी। तीन मुख्यमंत्री खुद सवालों घेरे में हैं , सुषमा स्वराज जैसी कद्दावर नेत्री भी सवालों के जवाब देनें के लिए उपलब्ध नहीं है। शिक्षा मंत्री की शिक्षा का ही विवादस्पद होना एक बहुत बड़ी परेशानी की ओर इंगित करता है। व्यापम घोटाला जिसमें गवाहों की विवादस्पद मौत हो रही है जिसे जनता आसानी से हत्या मान रही है उसमें भी जवाब और उचित कार्यवाही अपेक्षित है।
उपरोक्त सभी प्रकरणों में हमारे बोलने वाले प्रधानमंत्री की चुप्पी बड़ी खलती है क्युकी वोट एक प्रभावशाली और जवाबदेह नेतृत्व के लिये दिया गया था। व्यापम में एक पूरी पीढ़ी के अरमानों और मेहनत का दमन हुआ है और जो लोग काबिल नहीं है उनके हाथों में जनता का जीवन है।
सरकारी महकमों में जब तक एक चपरासी और बाबू उपरवालों के कलेक्शन एजेंट बनकर लूटना बंद नहीं करेंगे तब तक खाना न सही इसे चखना ज़रूर माना जाएगा। अगर भ्रष्टों को सज़ा अब भी नहीं हुई तो क्या फायदा होगा हमें एक मज़बूत सरकार चुनने का। पूर्ण बहुमत का फायदा ही क्या जब हर वादा जूमला साबित हो जाए।
देश देख रहा है क्युकी ये नई ६५% युवाओ की पीढ़ी परिणाम चाहती है , जल्द से जल्द। पिछले साठ सालों की दुहाई इसके गले नहीं उतरेगी। बाकि आपकी मर्ज़ी क्युकी परिवर्तन की राह में कब लोग विकल्प तलाशनें लगें कोई नहीं जानता।
धन्यवाद !
बात घोटालों की है , जब कांग्रेस के घोटालों को जनता ने लूट माना और बीजेपी को मौका दिया तो एक आशा के साथ उनलोगों नें भी मतदान किया जो इस छद्म लोकतान्त्रिक व्यवस्था में अपना विश्वास खो चुके थे। उन्हें मोदी जी में एक बहुत ही स्वाभिमानी और देशभक्त नेतृत्व दिखा जिसकी आज भी देश को ज़रूरत है। जब मोदी जी ने कहा कि ना खाऊंगा ना खाने दूंगा तो सबमे एक सकारात्मकता का संचार हो गया और लगा की आशाएं बस पूरी होने ही वाली हैं।
विगत कुछ महीनों में जिस प्रकार से एक के बाद एक घोटाले सामने आ रहे हैं लगता है मोदी सरकार बहुत जल्द कांग्रेस के द्वारा स्थापित भ्रष्टाचार के मापदंडों को पछाड़ देगी। तीन मुख्यमंत्री खुद सवालों घेरे में हैं , सुषमा स्वराज जैसी कद्दावर नेत्री भी सवालों के जवाब देनें के लिए उपलब्ध नहीं है। शिक्षा मंत्री की शिक्षा का ही विवादस्पद होना एक बहुत बड़ी परेशानी की ओर इंगित करता है। व्यापम घोटाला जिसमें गवाहों की विवादस्पद मौत हो रही है जिसे जनता आसानी से हत्या मान रही है उसमें भी जवाब और उचित कार्यवाही अपेक्षित है।
उपरोक्त सभी प्रकरणों में हमारे बोलने वाले प्रधानमंत्री की चुप्पी बड़ी खलती है क्युकी वोट एक प्रभावशाली और जवाबदेह नेतृत्व के लिये दिया गया था। व्यापम में एक पूरी पीढ़ी के अरमानों और मेहनत का दमन हुआ है और जो लोग काबिल नहीं है उनके हाथों में जनता का जीवन है।
सरकारी महकमों में जब तक एक चपरासी और बाबू उपरवालों के कलेक्शन एजेंट बनकर लूटना बंद नहीं करेंगे तब तक खाना न सही इसे चखना ज़रूर माना जाएगा। अगर भ्रष्टों को सज़ा अब भी नहीं हुई तो क्या फायदा होगा हमें एक मज़बूत सरकार चुनने का। पूर्ण बहुमत का फायदा ही क्या जब हर वादा जूमला साबित हो जाए।
देश देख रहा है क्युकी ये नई ६५% युवाओ की पीढ़ी परिणाम चाहती है , जल्द से जल्द। पिछले साठ सालों की दुहाई इसके गले नहीं उतरेगी। बाकि आपकी मर्ज़ी क्युकी परिवर्तन की राह में कब लोग विकल्प तलाशनें लगें कोई नहीं जानता।
धन्यवाद !