नमस्कार सभी को। काफी समय हुआ कुछ लिखे , देश में बहुत कुछ हो रहा था और मै उस बहुत कुछ में 'विकास ' खोज रहा था। साधु , साध्वी, महंतो की उच्चस्तरीय भाषा से ओतप्रोत मै सोच रहा था की क्या सच में ये भगवान से मिलवाते होंगे या पथप्रदर्शक होंगे , जिनके होंगे उनके साथ मेरी अपार सहानुभूति। फिर मैंने देखा लोग अपने घर वापस आ रहे है , सोचा शायद वादे के अनुसार कश्मीरी पंडित घर पहुंच गए होंगे पर यहाँ घर का एक और पर्यायवाची सुनने को मिला। गांधीजी की तस्वीर अपने दफ्तर में लगाने वाले हमारे लोकप्रिय प्रधानमंत्रीजी के साथी तो गांधीजी के हत्यारे को देशभक्त ठहरा रहे थे। शायद वो गाँधीयो के विरोध की बयार में बह निकले , गलती भी नहीं है क्युकी उन्हें ये ही सिखाया गया है । जब भी कोई विवादस्पद बयान आता मै उसके माफीनामे के इंतज़ार में रहता और अधिकतर मौकों पर मै निराश नहीं हुआ , सन्देश के विस्तार का ये गजब तरीका देखा क्युकी हमारे देश के पार्टी सपोर्टर उस घृणित बयान को माफीनामा आने से पहले तक इतना फैला चुके होते हैं की उसे वापस लेने की गुंजाईश का होलिका दहन हो चूका होता है और ब्रेकिंगन्यूज़ पिपासु हमारे देश की जनता बस बयान पे अटकी रह जाती है.
हमारी पवित्र गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने की बात पर मै थोड़ा चौंक गया , मै सोचता था हमारी गीता सारे विश्व के लिए सन्देश है तो उसे देश की सीमा में बाँधने की क्या ज़रुरत आन पड़ी। संविधान तो पहले से ही राष्ट्रीय ग्रन्थ है ही। गीता भी राष्ट्रीय हो गई तो क्या हम भी युद्ध कर के हर समस्या का समाधान करेंगे ? पांडवो के पास तो भगवान थे हम तो भगवान के इंतज़ार में है। संस्कृत में जैसे तैसे पास होने वाले हम छात्र उसे कितना बोल पाएंगे ये बड़ा पेचीदा विषय होगा। अंतराष्ट्रीय बाजार में तेल के भाव जब ४०% तक सस्ते हुए तो मै बड़ी आशा से ४०% की कीमतों में गिरावट के सपने संजोने लगा पर ये क्या ये तो बस ६ -७ रूपये पर सिमट गया, पर चलो कम तो हुआ , हम भारतीयों को कौन सा हमारा हक़ मिलने की आदत है इस एहसान का ही शुक्रिया कर मै आगे बढ़ा।
जो लोग तेल के दाम बढ़ने का हवाला दे कर दूध और सब्ज़ियों जैसी चीज़े महंगी होने की दुहाई दे रहे थे मुझे उनका ख़याल आया और मै चला कुछ खरीदने। पर यहाँ सब्ज़ी रानी और दूध राजा नीचे आने को तैयार नहीं थे , जो दुर्गति पहले थी वो अब भी है। किसी ने ये भी कहा की भाव सिर्फ बढ़ने के लिए होते है कम होने के लिए नहीं , काश मेरी पगार भी इन राजा रानी से कुछ सीख पाती। और फिर हमारे देश में तो तथाकथित एम आर पी से ऊपर बेचने का रिवाज़ है , लेना हो तो लो वरना रास्ता नापो। मुझमे अब भी काफी उम्मीदें थी , पता था अब पड़ौसी मुल्क कुछ मज़ाल न कर पाएगा पर मेरे सपने अगले ही दिन टूटे जब देश की एकमात्र देशभक्त प्रजाती हमारी सेना के जवानों के शहीद होने की खबर से सामना हुआ , यहाँ भी कुछ न बदला।
हम भारतीय आशावान है और अपनी समस्याओं के समाधान की आशा हमेशा रहेगी। हम आशावान जीते हैं और आशा में ही परलोक सिधार जाते हैं। स्वच्छ भारत की आशा तो मुझे निकट भविष्य में ही पूरी होती दिखाई दी और मै भी मोदीजी के साथ इस अभियान में अपनी तरफ से व्यक्तिगत योगदान के लिए आतुर हो गया। वैसे तो मै पहले से सफाई प्रिय था पर अब और जागरूक हो गया था। पर ये क्या मेरे कई अज़ीज़ दोस्त जो मोदी भक्त कहलाने में गर्व महसूस करते है और सारी घृणा फैलाने वाली खबरों को अपने शिक्षा पे खर्च हुए पैसे का उपयोग कर सोशल मीडिया पर प्रचारित करते हैं , शायद इस अभियान से विमुख हैं या दीवारों पर अपनी पीक से चित्रकारी करना उनका शौक है। एम एफ हुसैन का हिन्दू वर्ज़न भी तो होना चाहिए। हर सार्वजनिक कोना इनके लिए पीकदान या शौचालय है , पर हाँ सार्वजनिक स्थान पर किसी बालिग़ लड़के लड़की को देख कर इनके धर्म पर आंच आ जाती है और ये धर्मरक्षा के लिए हिंसा कर डालते है।
अरे ! ये सब पढ़ते पढ़ते क्या आप मुख्य मुद्दे से भटक गए या भूल गए ? अगर हाँ तो बस मेरी स्थिति भी ये ही हो गई है। मै भी निकला था डेवलपमेंट उर्फ़ विकास के पहले कदम की तलाश में , काले धन के आकड़ों में अपने चुकाए टैक्स के वादे के अनुसार हिस्से के लिए , चोरों के नाम के लिए , पुराने आरोपियों को जेल में देखने की पहल की आशा में , किसानों के समृद्धि की ओर कदम की आस में (बजट कटौती नहीं), भ्रष्टाचार मुक्त और सामाजिक सौहार्द्र युक्त समाज की आस में , उत्तरदायी सरकारी नौकरों और सवालों के जवाब देने वाले नेताओ की तलाश में।
किसी अतिमहत्वाकांक्षी और मोहक मेनिफेस्टो सा लगता है न जिसे देख हम ५ साल के लिए बटन दबा आते हैं ? समय मिले तो सोचो ।
धन्यवाद !
हमारी पवित्र गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने की बात पर मै थोड़ा चौंक गया , मै सोचता था हमारी गीता सारे विश्व के लिए सन्देश है तो उसे देश की सीमा में बाँधने की क्या ज़रुरत आन पड़ी। संविधान तो पहले से ही राष्ट्रीय ग्रन्थ है ही। गीता भी राष्ट्रीय हो गई तो क्या हम भी युद्ध कर के हर समस्या का समाधान करेंगे ? पांडवो के पास तो भगवान थे हम तो भगवान के इंतज़ार में है। संस्कृत में जैसे तैसे पास होने वाले हम छात्र उसे कितना बोल पाएंगे ये बड़ा पेचीदा विषय होगा। अंतराष्ट्रीय बाजार में तेल के भाव जब ४०% तक सस्ते हुए तो मै बड़ी आशा से ४०% की कीमतों में गिरावट के सपने संजोने लगा पर ये क्या ये तो बस ६ -७ रूपये पर सिमट गया, पर चलो कम तो हुआ , हम भारतीयों को कौन सा हमारा हक़ मिलने की आदत है इस एहसान का ही शुक्रिया कर मै आगे बढ़ा।
जो लोग तेल के दाम बढ़ने का हवाला दे कर दूध और सब्ज़ियों जैसी चीज़े महंगी होने की दुहाई दे रहे थे मुझे उनका ख़याल आया और मै चला कुछ खरीदने। पर यहाँ सब्ज़ी रानी और दूध राजा नीचे आने को तैयार नहीं थे , जो दुर्गति पहले थी वो अब भी है। किसी ने ये भी कहा की भाव सिर्फ बढ़ने के लिए होते है कम होने के लिए नहीं , काश मेरी पगार भी इन राजा रानी से कुछ सीख पाती। और फिर हमारे देश में तो तथाकथित एम आर पी से ऊपर बेचने का रिवाज़ है , लेना हो तो लो वरना रास्ता नापो। मुझमे अब भी काफी उम्मीदें थी , पता था अब पड़ौसी मुल्क कुछ मज़ाल न कर पाएगा पर मेरे सपने अगले ही दिन टूटे जब देश की एकमात्र देशभक्त प्रजाती हमारी सेना के जवानों के शहीद होने की खबर से सामना हुआ , यहाँ भी कुछ न बदला।
हम भारतीय आशावान है और अपनी समस्याओं के समाधान की आशा हमेशा रहेगी। हम आशावान जीते हैं और आशा में ही परलोक सिधार जाते हैं। स्वच्छ भारत की आशा तो मुझे निकट भविष्य में ही पूरी होती दिखाई दी और मै भी मोदीजी के साथ इस अभियान में अपनी तरफ से व्यक्तिगत योगदान के लिए आतुर हो गया। वैसे तो मै पहले से सफाई प्रिय था पर अब और जागरूक हो गया था। पर ये क्या मेरे कई अज़ीज़ दोस्त जो मोदी भक्त कहलाने में गर्व महसूस करते है और सारी घृणा फैलाने वाली खबरों को अपने शिक्षा पे खर्च हुए पैसे का उपयोग कर सोशल मीडिया पर प्रचारित करते हैं , शायद इस अभियान से विमुख हैं या दीवारों पर अपनी पीक से चित्रकारी करना उनका शौक है। एम एफ हुसैन का हिन्दू वर्ज़न भी तो होना चाहिए। हर सार्वजनिक कोना इनके लिए पीकदान या शौचालय है , पर हाँ सार्वजनिक स्थान पर किसी बालिग़ लड़के लड़की को देख कर इनके धर्म पर आंच आ जाती है और ये धर्मरक्षा के लिए हिंसा कर डालते है।
अरे ! ये सब पढ़ते पढ़ते क्या आप मुख्य मुद्दे से भटक गए या भूल गए ? अगर हाँ तो बस मेरी स्थिति भी ये ही हो गई है। मै भी निकला था डेवलपमेंट उर्फ़ विकास के पहले कदम की तलाश में , काले धन के आकड़ों में अपने चुकाए टैक्स के वादे के अनुसार हिस्से के लिए , चोरों के नाम के लिए , पुराने आरोपियों को जेल में देखने की पहल की आशा में , किसानों के समृद्धि की ओर कदम की आस में (बजट कटौती नहीं), भ्रष्टाचार मुक्त और सामाजिक सौहार्द्र युक्त समाज की आस में , उत्तरदायी सरकारी नौकरों और सवालों के जवाब देने वाले नेताओ की तलाश में।
किसी अतिमहत्वाकांक्षी और मोहक मेनिफेस्टो सा लगता है न जिसे देख हम ५ साल के लिए बटन दबा आते हैं ? समय मिले तो सोचो ।
धन्यवाद !
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