बुधवार, 24 सितंबर 2014

मेरा धर्म मेरा देश !

मै बड़ा धार्मिक व्यक्ति हूँ और अच्छे लोगो की संगति एवं आला दर्ज़े (महंगी नहीं )की स्कूली शिक्षा से समझा हूँ कि 'मज़हब नहीं सीखता आपस में बैर रखना ' . हिन्दू धर्म का होने पर गर्व की अनुभूति भी होती है क्युकी हमारा धर्म ही हमारे देश को त्यौहारो का देश बनता है , सौहाद्र और सहिष्णुता का संचार करता है। धर्म की ज़रुरत मानव को आपस में जुड़े रहने के लिए पड़ी होगी।  इसमें जीवन दर्शन और जीवन यापन के आदर्श भी हैं जो हमें भ्रमित होने से बचाने के लिए हैं। मेरे धर्म ने कभी नहीं कहा की वो सर्वश्रेष्ठ है पर इसका पूर्णरूपेण पालन  करने वाले श्रेष्ठ चरित्र के ज़रूर बन जाते है।  श्रेष्ठ चरित्र महिलाओ , माता पिता, अन्य धर्मों और सभी प्राणियों का सम्मान करने में है क्युकी ये धर्म ही हमें नरभक्षी और वहशी तत्वों से अलग करता है , अगर आप इस प्रकार के तत्वों को खुद में या किसी और में देखते है तो समझिए की ये धर्महीनता या धर्म  को गलत तरीके से परिभाषित करने का परिणाम है।

इसे समझना आकाश में बादलों में आकृतियों की कल्पना करने जैसा है इसी लिए शायद इसकी व्याख्याओं में भयंकर त्रुटियाँ है और इसके व्याख्याकार हमें अपने व्यक्तिगत हितों के अनुसार भरमा भी देते हैं। चाणक्य ने जब ये कहा की राज धर्म किसी भी धर्म से बड़ा है तो सच भी लगा क्युकी अपनी मातृभूमि के सम्मान की रक्षा हम अपने दैनिक जीवन में कर के अच्छे चरित्र को प्राप्त कर लेते हैं और किसी भी धर्म का उद्देश्य ये ही तो है। हमारे धर्म की व्याख्या में त्रुटियाँ न होती तो क्या हम खून के प्यासे होते, क्या हम सभी का सम्मान न करते , बलात्कार , भ्रष्टाचार और खूनियो को गले न लगाते।  ये सब तो मेरा धर्म नहीं सीखता।

हाल ही के घटनाक्रमों को ध्यान में रखें तो समस्याओं की मूल जड़ को समझा जा सकता है।  हमारी आस्था पर सदियों से करारे प्रहार होते आए हैं क्युकी सभी धार्मिक किताबों की अभिगम्यता होने के बावजूद हमें एक स्वयंभू संत , गुरु , बाबा या योगी की ज़रुरत होती है जिसे हम आँखे बंद करके अपनी सारी समझ और अक्ल समर्पित कर देते हैं। भेड़ की तरह भीड़ के पीछे सर झुकाए निकल पड़ते हैं। ये भूल जाते हैं  की संत , गुरु , बाबा या योगी भीड़ में नहीं पाए जाते , ये लोग महंगी गाड़ियों और आलिशान बंगलों में नहीं होते है , ये नेता भी नहीं होते हैं न ही कभी किसी के लिए नफ़रत भरे बोल बोलते हैं , भगवानों की लड़ाई भी नहीं लड़ सकते ।  ये वो फ़कीर सन्यासी होते है जो अपनी व्यक्तिगत जिंदगी का त्याग कर लोगो के लिए और ईश्वर के लिए जीते हैं। लोगों के लिए जीवन जीने की प्रेरणा होते है जो अपनी जीवन शैली से इसके अनुसरण की प्रेरणा देते हैं। क्या आपके गुरु अनुसरणीय हैं ? ज़रा सोचिये।

ये एक अनकहा सत्य है की धर्म को हम अपनाते है और चूँकि हमें  कई धर्मों के इकोसिस्टम में रहने का सौभाग्य प्राप्त है , हम सभी धर्मों से कुछ सीख सकते हैं जिनकी व्याख्या अलग अलग परिस्थितियों में की गई है। हम ये भी देख सकते हैं की हमारे धर्म के योगी , गुरु  संतों की जीवनशैली और व्यवहार गीता/ कुरान / बाइबिल में लिखे अनुसार है भी या नहीं। धर्म ने प्रेम की सीमा को संकुचित नहीं किया पर इसके ठेकेदारों ने जरूर करदिया। धर्म ने हिंसा का प्रतिकार किया पर हज़ारों लाखो मासूम धार्मिक हिंसा का शिकार हो जाते हैं। क्या किसी ने किसी धर्म के ठेकेदार को इस हिंसा का शिकार होते देखा है ? मैंने तो नहीं देखा।  वो कौन थे जो अब नहीं रहे ? क्या उनके परिवारों का भरण पोषण धर्म के ये अरबपति ठेकेदार कर रहे हैं ? उन परिवारों की तात्कालिक परिस्थिति क्या है ? ज़रा सोचिये और देखिये।

राजधर्म की उपेक्षा से हमारे देश ही अंदर से खोखला करने वाले नफरत के ज़हर का संचार हो रहा है। धर्म की अमानवीय व्यख्या  ही हमें वहशी और अमानव  बना रही है।  धर्म और आध्यात्म की जटिल गहराइयों को समझने की जगह हम राजनीति से प्रेरित नफरत को हवा देने में लगे है।  इसके परिणाम भयंकर है क्युकी मैंने इस पीढ़ी के माता पिता को अपने छोटे बच्चों को नफ़रत की शिक्षा देते देखा है क्युकी वे ही प्रतिबिम्ब और प्रथम शिक्षक हैं उन बालमनों के  लिए । हमारी शिक्षा से हम इंजीनियर , डॉक्टर और मैनेजर तो बन रहे है पर इसका  इंसान बनाने में योगदान नाममात्र भी नहीं लगता है क्युकी मैंने पढ़े लिखों को सोशल मीडिया पर नफ़रत फैलाते देखा है।  हर नफ़रत भरी बात को बिना सत्यता जाने साझा करने को आतुर ये मेरे ६५% पढ़े लिखे युवा भाई बहन किस मजबूत देश का निर्माण करने वाले हैं ये तो भगवान ही जाने। आतंकवाद को हटाने के लिए खुद आतंकवादी बनाना ज़रूरी नहीं है और किसी अपराधी को उसके धर्म के आधार पर आंकना भी नहीं । याद रखिये रावण भी एक ब्राह्मण था पर उसकी प्रवृत्ति आसुरी थी।

धर्म पुराना हो चूका है , कुरीतियाँ अब भी है।  जीवन दर्शन भी बदल गया है।  जब इंसान सुर से असुर हो गया तो धर्म पुराना क्यों ? सभी धर्मों की प्रेम रूपी व्याख्या ही समाधान है वरना नास्तिकों से ज्यादा भ्रमित और ज़हरीला आस्तिक राजधर्म और मानवता  के लिए खतरा है।

राजधर्म ही सबसे बड़ा धर्म है।  कृपया अपने धर्म की पवित्र पुस्तकों को खुद पढ़े वहाँ नफ़रत नहीं प्रेम ही मिलेगा।    संत और गुरु की परिभाषा भी पढ़े या  गूगल कर लें। किसी कपटी चरित्रहीन ढोंगी का सहारा जीवन दर्शन और चरित्र निर्माण के लिए लेना देशद्रोह से कम  नहीं है इससे आगे चल कर आपकी आस्था को ही ठेस पहुंचेगी, क्युकी अंतरात्मा से झूठ न बोल पाओगे और बौखला कर अधर्मी हो जाओगे  । संत , योगी और गुरु इतनी आसानी से नहीं पाए जाते न ही दूकान लगाए बैठे होते है, जीवन को सही राह पे लाने और धर्म की मानवीय व्याख्या करने वाले ईश्वर और अल्लाह के बंदे को ढूंढना भी तपस्या ही है। ईश्वर को समझना है तो मानव बने और मानवता की राह पर चलें।

धन्यवाद !



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