हम भारतीय हैं। परिभाषा के अनुसार तो सबसे संस्कारी , किसी भी धर्म , जाति विशेष के लिए सदैव बाँहें फैलाए खड़े रहने वाले। वैसे भी वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत तो सैद्धांतिक तौर पर मानाने वाले हम भारतीयों की पहचान ही ये है की इसे किसी एक धर्म या जाति के रूप में न देख कर इनके एक समूह के रूप में परिभाषित किया जाता रहा है और गज़ब का संतुलन रहा करता था सबके बीच। किसी ने कहा था कि भारत उत्सवों का देश है , हो भी क्यों न क्युकी इतने धर्मो एवं जातियों में से किसी न किसी का कोई त्यौहार हमेशा रहता ही है , तभी तो सौहाद्र की परिकल्पना की गई है।
हमारी आज़ादी को ६५ साल से ज्यादा हो चुके है और इस अंतराल में कई बार इस भारतीय परिभाषा को आहात करने की सफल कोशिश हुई है। कहा जाता है फुट डालो शासन करो का सूत्र अँगरेज़ ले कर आए थे और गजब का उपयोग भी किया था। क्युकी हम भारतीय गलतियों से सीखने का हर मौका गवाना अच्छे से जानते हैं इसलिए २०० साल की गुलामी के बाद भी एक नया वर्ग (नेता ,धर्म के ठेकेदार आदि ) इस सूत्र को उपयोग कर रहा है । हमें आज़ादी मिली थी क्युकी हम एक थे पर बाद में हमारे नेताओं ने अंग्रेज़ो की अन्य विरासतों (रेल , कानून, अधोसंरचना आदि ) के साथ साथ फुट डालने को भी आगे बढ़ाया और अब तक वे एक नफरत की चिंगारी सबके मन में जगाने में कामयाब भी रहे है।
इन ६७ सालों में हम क्या से क्या हो गए है , हमारा अपराधों , भ्रष्टाचार , अमानवता , स्त्री का अपमान को लेकर प्रतिरक्षात्मक रवैया बढ़ता ही जा रहा है। तभी तो हम एक अपराधी , भ्रष्टाचारी , बलात्कारी को अपना प्रतिनिधी बनाकर हम पर ही शासन करने के लिए चुन लेते है। नारी को शक्ति मान कर पूजा करने वाले हम भारतीयों का खून तब भी नहीं खौलता जब एक देवी का प्रतिनिधित्व करने वाली नारी की अस्मत पर हमारे पड़ोस में ही आंच आ जाती है और हम मूक एवं असहाय हो जाते हैं , और वहीं किसी नेता या अधर्म गुरु के बहकावे में आकर हम मासूमो का संहार करने से भी न चूकते हैं , हमेशा आडम्बर रुपी भड़काव के लिए तैयार .
कभी सीना ठोंक भ्रष्टाचार के खिलाफ न बोलेंगे और ये जानते हुए भी की ये पैसा कैसे और कहाँ तक जा रहा है हम उसे मिटाने की पहल करने के बजाए एक सरकारी नौकरी की इच्छा रखने लगते है ताकि शोषितों से हटकर शोषण करने वालों की सूचि में दर्ज हो जाएं।
नफरत और निराशा के ६७ साल के लगातार डोज़ से अपराधो, अपमान , ठगी, धर्मान्धता के प्रति हमारी प्रतिरोधक क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है जिसके फलस्वरूप आज कमज़ोर वर्ग (महिलाए ,बच्चे , गरीब ) इसकी आंच में झुलसना शुरू हो गया है और यदि हम भी कमज़ोरी की ओर इसी तरह अग्रसर रहे तो परिणाम भयानक होंगे। संगठन का न होना , धर्म की सही परिभाषा को न पहचानना एवं भारतियों की परिभाषा को न जानना ही कुछ मूल कारण हैं जो हमें कमजोर बनाए रखे है। इसी के उलट करजोर करने वाली शक्तियों न केवल मजबूत हुई है साथ ही साथ एक अहंकार भी ले चूका है जो की हमारी दुराचार के प्रति उपेक्षा का नतीजा है।
भारतीय होने पर गर्व भी अधिकतर वो ही करते हैं , जो देश पहले ही छोड़ चुके हैं और लौटने का न उद्देश्य है मंशा। बस शोशल मीडिया पर देशभक्ति दिखादो। एक होने का समय बीता जा रहा है , कम से कम अपने बच्चो के मन में प्यार का बीज बोए नफ़रत का नहीं। नेताओं के साथ उनके अन्य पोस्टर बॉयज को पहचानना कहा ज्यादा मुश्किल है, साथियों को देख नेता का चरित्र पहचाना जा सकता है । खुद को ठगना कोई हमसे सीखे, बबूल का बीज बो कर हम आम की इच्छा नहीं रख सकते।
एकता में शक्ति है , देर से सही जीत जाएंगे अगर साथ रहे अन्यथा हमेशा कथित एवं अकथित तौर पर गुलाम ही रहेंगे। कृपया देश बचाएं!
हमारी आज़ादी को ६५ साल से ज्यादा हो चुके है और इस अंतराल में कई बार इस भारतीय परिभाषा को आहात करने की सफल कोशिश हुई है। कहा जाता है फुट डालो शासन करो का सूत्र अँगरेज़ ले कर आए थे और गजब का उपयोग भी किया था। क्युकी हम भारतीय गलतियों से सीखने का हर मौका गवाना अच्छे से जानते हैं इसलिए २०० साल की गुलामी के बाद भी एक नया वर्ग (नेता ,धर्म के ठेकेदार आदि ) इस सूत्र को उपयोग कर रहा है । हमें आज़ादी मिली थी क्युकी हम एक थे पर बाद में हमारे नेताओं ने अंग्रेज़ो की अन्य विरासतों (रेल , कानून, अधोसंरचना आदि ) के साथ साथ फुट डालने को भी आगे बढ़ाया और अब तक वे एक नफरत की चिंगारी सबके मन में जगाने में कामयाब भी रहे है।
इन ६७ सालों में हम क्या से क्या हो गए है , हमारा अपराधों , भ्रष्टाचार , अमानवता , स्त्री का अपमान को लेकर प्रतिरक्षात्मक रवैया बढ़ता ही जा रहा है। तभी तो हम एक अपराधी , भ्रष्टाचारी , बलात्कारी को अपना प्रतिनिधी बनाकर हम पर ही शासन करने के लिए चुन लेते है। नारी को शक्ति मान कर पूजा करने वाले हम भारतीयों का खून तब भी नहीं खौलता जब एक देवी का प्रतिनिधित्व करने वाली नारी की अस्मत पर हमारे पड़ोस में ही आंच आ जाती है और हम मूक एवं असहाय हो जाते हैं , और वहीं किसी नेता या अधर्म गुरु के बहकावे में आकर हम मासूमो का संहार करने से भी न चूकते हैं , हमेशा आडम्बर रुपी भड़काव के लिए तैयार .
कभी सीना ठोंक भ्रष्टाचार के खिलाफ न बोलेंगे और ये जानते हुए भी की ये पैसा कैसे और कहाँ तक जा रहा है हम उसे मिटाने की पहल करने के बजाए एक सरकारी नौकरी की इच्छा रखने लगते है ताकि शोषितों से हटकर शोषण करने वालों की सूचि में दर्ज हो जाएं।
नफरत और निराशा के ६७ साल के लगातार डोज़ से अपराधो, अपमान , ठगी, धर्मान्धता के प्रति हमारी प्रतिरोधक क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है जिसके फलस्वरूप आज कमज़ोर वर्ग (महिलाए ,बच्चे , गरीब ) इसकी आंच में झुलसना शुरू हो गया है और यदि हम भी कमज़ोरी की ओर इसी तरह अग्रसर रहे तो परिणाम भयानक होंगे। संगठन का न होना , धर्म की सही परिभाषा को न पहचानना एवं भारतियों की परिभाषा को न जानना ही कुछ मूल कारण हैं जो हमें कमजोर बनाए रखे है। इसी के उलट करजोर करने वाली शक्तियों न केवल मजबूत हुई है साथ ही साथ एक अहंकार भी ले चूका है जो की हमारी दुराचार के प्रति उपेक्षा का नतीजा है।
भारतीय होने पर गर्व भी अधिकतर वो ही करते हैं , जो देश पहले ही छोड़ चुके हैं और लौटने का न उद्देश्य है मंशा। बस शोशल मीडिया पर देशभक्ति दिखादो। एक होने का समय बीता जा रहा है , कम से कम अपने बच्चो के मन में प्यार का बीज बोए नफ़रत का नहीं। नेताओं के साथ उनके अन्य पोस्टर बॉयज को पहचानना कहा ज्यादा मुश्किल है, साथियों को देख नेता का चरित्र पहचाना जा सकता है । खुद को ठगना कोई हमसे सीखे, बबूल का बीज बो कर हम आम की इच्छा नहीं रख सकते।
एकता में शक्ति है , देर से सही जीत जाएंगे अगर साथ रहे अन्यथा हमेशा कथित एवं अकथित तौर पर गुलाम ही रहेंगे। कृपया देश बचाएं!
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