सोमवार, 10 अक्टूबर 2016

अंधभक्त और देशभक्ति

अंधभक्तों के लिए देशभक्ति की गाइड लाइन :

-देखें किस पार्टी की सरकार है (अपनी पार्टी की है तो एक कविता भी पेल दो, अगर दूसरी पार्टी की सरकार है तो सेना पर गर्व करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि ये तो उनका काम है ।)।
- अगले चुनाव कहाँ है (अगर चुनाव नजदीक हों तो जोर शोर से प्रचार करें , अगर ऐसे राज्य में हैं जहाँ अपनी पार्टी की सरकार नहीं है तो फिर सारे काम छोड़ कर देशभक्त हो जाना है ।)
- सेना नें किस देश को मज़ा चखाया है । (अगर ऑपरेशन पकिस्तान में हुआ है तो ये बहुत अच्छा मौका है अपनी पार्टी के एजेंडे को आगे बढ़ाने का , तुरंत सीरिया और अफगानिस्तान के फोटो शेयर करें , अपने देश के मुसलमानों पर सवालिया ऊँगली उठाएं । अगर चीन से मुठभेड़ हुई है तो ज्यादा बोलने की ज़रूरत नहीं है , बस अपने मेड इन चाइना फोन से चाइनिज प्रोडक्ट के इस्तेमाल को बैन करने की अपील करो ।
- सबसे पहले ये बात फैलाइये की अपनी पार्टी के नेता की वजह से ही सेना इस काबिल हो पाई है और सेना का श्रेय अपने लीडर को दें , कोई ये बताए की ऐसे ऑपरेशन पहले भी हुए हैं तो उस व्यक्ति को देशद्रोही साबित करने में अपनी जी जान लगा दें ।
- कोई अंतर्राष्ट्रीय नीयम कायदे बताए तो उसे सिरे से खारिज करें और अपनी पार्टी के न्यूज़ चैनल पर चलाए जा रहे फ़र्ज़ी कार्यक्रमों की लिंक शेयर कर के ये साबित करें की सेना पर सवाल उठाए जा रहे हैं ।
-अगर सरकार अपनी पार्टी की सरकार OROP की मांग कर रहे पूर्व सैनिकों के कपडे भी फड़वा दे तो कुछ ना बोलें और अपना ध्यान मंदिर , गाय और बीफ की तरफ लगाएं ।
- अपनी पार्टी को एक्सपोज़ करने वाले विरोधियों की माँ बेहन पर अश्लील मैसेज बना कर उसको व्हात्सप्प पर  फैलाएं , हो सके तो भाद्दी गलियां भी भेजें ।
-सच बोलने वाले कुछ पत्रकारों जिनको पार्टी खरीद ना पाई हों उनके खिलाफ लंबे मेसेज में कहानियां बना कर भेजें और उनको पाकिस्तानी समर्थक बताएं ।
- थोड़ी सी भी समझदारी वाली बात करने वाले को बुद्धिजीवी बता कर उसकी हर फेसबुक पोस्ट पर अपने घटिया और कुतर्की दिमाग का उपयोग कर खुले में शौच करें ।
- जब भी सेना पाकिस्तान पर कोई कार्यवाही करे तो इसे मौका समझ कर अपने देश के विशेष धर्म से आने वाले कलाकारों की फिल्में ना देखने की अपील करें , हो सके तो खुद से उनके बयान फोटोशॉप करके व्हात्सप्प और फेसबुक पर फैलाएं ।
-देश नफरत भरे माहौल को बनाए रखें , हमेशा राष्ट्र की बात करें । अगर कोई असली देशभक्त मिले तो पलटी मार कर हिन्दू राष्ट्र पर स्विच कर दें ।
-याद रखें जब तक हिन्दू राष्ट्र , गाय , बीफ , साम्प्रदायिकता की बात करेंगे तब तक अपनी पार्टी से कोई बेरोजगारी , अशिक्षा , भ्रष्टाचार, मरते किसान , दलित, महंगाई और भुखमरी पर सवाल नहीं पूछ पाएगा । हमेशा ध्यान भटकाने की कोशिश करते रहें ।
-त्यौहारों पर कुरीतियों के खिलाफ खूब पोस्ट आते हैं , उसे अपने घर्म के खिलाफ साजिश बता कर डिफेंड करें और कुतर्क दे कर दूसरे धर्म की कुरीति से तुलना करके बात रफा दफा करने की कोशिश करें ।
-अपने बच्चों को उनके खुद के अनुभवों से ना सीखने दें , उनमें सांप्रदायिक और जातिवाद का जहर बचपन से भरते चलें ताकि आपके स्वर्ग सिधारने के बाद भक्त परंपरा बनी रहे ।
-आखिर में सबसे ज़रूरी बात , कभी भी तर्क से काम ना लें , महंगाई बढे तो चुप रहें , हालात कभी नहीं सुधर सकते ये बात गांठ बाँध लें । अपने दिमाग से ज्यादा काम ना लें क्योंकि जब नया हिन्दू राष्ट्र बनेगा तो आपको ही प्रधानमंत्री बनाया जाएगा  ।

धन्यवाद!!

गुरुवार, 17 मार्च 2016

जवाब या सवाल ?




जावेद अख्तर की राजयसभा की फेयरवेल स्पीच को सिर्फ ओवैसी को जवाब मानना हमारा वैचारिक छोटापन दिखता है।  ओवैसी के खोखलेपन को उधेड़ने के साथ साथ जावेद साहब नें डेमोक्रेसी/लोकतंत्र को भी रिडिफाइन  किया और सरकार से ले कर विपक्ष तक को आगाह किया।  भारत क्या है और क्यों यहाँ का होना दुनिया की बहुत खूबसूरत चीज़ों में से एक है ये बताया है।  साथ साथ जीडीपी में भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती  को आंकने जैसी भ्रमित चीजों पर भी आघात किया . देश में जहाँ ६५% युवा हैं वहां ये युवा एनर्जी हम किस ओर लगा रहे हैं और कहाँ लगनी चाहिए ये बताया।  युवा फेसबुक ट्वीटर पर नफरत भरे पोस्ट शेयर कर रहा है जबकि वो देश की गरीबी , भुखमरी , असमानता , साम्प्रदायिकता और ऐसी कई बुराइयों पर काम कर के और इसकी बात करके इसे देश की जड़ों से उखाड़ सकता है।  जो देश अभी युवा है वो कभी बूढ़ा भी होगा , तब ये बदलती सोच और ये एनर्जी नहीं बचेगी। भारत जो इस पीढ़ी में बनेगा वो अगले १५० से २०० सालों तक रहेगा क्युकी तब शायद एक और युवा पीढ़ी खड़ी  होगी।

जावेद अख्तर साहब नें इस ओर भी ध्यान दिलाया की हम क्या बनते जा रहे हैं।  जो देश धार्मिक कट्टरता के चलते आज बर्बादी की कगार पर हैं वो हमारे पड़ौसी भी हैं और महान लोग और देश दूसरों की गलती से सीखते हैं ना की उन गलतियों को दोहराते हैं। जब कोई गलत के खिलाफ आवाज़ उठता है तो आजकल उसे बोला जाता है की अगर उस देश में होते तो सर कलम हो जाता , ज़ुबान काट दी जाती , तो क्या हम भी वैसा देश बनाना चाहते हैं ? वो हमारे आदर्श हैं ? या अमेरिका जैसे देश जहाँ कमियों के बावजूद ना जाने कितने देशों के लोग जा कर उस देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बना रहे हैं , अपनी रोज़ी रोटी कमा रहे हैं और अपने देशों से ज्यादा व्यवस्थित जीवन जी रहे हैं।

जावेद साहब नें ये भी कहा की भारत माता की जय कहना मेरा कर्तव्य है या नहीं, ये मैं नहीं जानना चाहता। ये मेरा अधिकार है तो मैं कहता हूँ 'भारत माता की जय' . मैं इस बात की भी निंदा करता हूँ जब कहा जाता है कि मुसलमान के दो स्थान, कब्रिस्तान या पाकिस्तान।ये भावना ही भारत की बुनियाद है और इसपर प्रहार होना अच्छे संकेत नहीं है। जीडीपी को डेवलपमेंट मानाने की होड़ में हम ह्यूमन डेवलपमेंट करना भूल गए हैं जबकि भारतीय लोग शिक्षित हो या ना हो उनका आईक्यू पूरे विश्व में माना गया है। क्यों आज मंदिर मस्जिद मुद्दे हैं और ये युवा देश गरीबी , बेरोज़गारी जैसे बुनियादी सवाल नहीं पूछ रहा ? क्यों सबसे ज़्यादा टीबी के मरीज़ हमारे मुल्क में है। क्यों हर साल 50000 औरतें प्रेगनेंसी की छोटी सी दिक्कतों के कारण ही मर जाती हैं? कैसे लोगों में विपक्ष का ना होना अच्छी बात बताई जा रही है जबकि हमारे देश के लोकतंत्र की ये ही खूबसूरती है की यहाँ विपक्ष है ? क्यों देश का मीडिया जिसे देश के लोगों के सवाल उठाने के लिए होना चाहिए आज चंद पैसों के लिए सरकार का मुखपत्र बना हुआ है और जो सवाल उठा रहे हैं और अपना काम कर रहे हैं उन्हें देशद्रोही करार दिया जा रहा है ? बुनियादी सवाल क्या हैं ? कितने समय ये देश युवा रहेगा ? ये सब विचारणीय है। 

बुनियादी सवाल ये भी है की अगर किसान यूँ ही मरता रहा तो देश का पेट कौन भरेगा , अनाज आयत करके कब तक और कौन कौन पेट भर पाएगा ? ये अनाज कितने का मिलेगा ? पेट्रोल की तरह क्या इस अनाज पर भी सरकार टैक्स वसूलेगी? असल बात ये है की धर्म जिसे शायद कम ही युवा पहचानते हैं के नाम पर कई देश बांटे और तोड़े गए हैं और यही पैंतरा अब भी लागू करने की कोशिश है। अगर  देश ये नहीं कह रहा की मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है तो महानता तो दूर देश को बचाना भी मुश्किल होगा। देश का रंग ना भगवा है ना हरा , देश सभी रंगों से बनी एक तस्वीर होगी तभी सुन्दर लगेगा जो अबतक लगता आया है। 
जावेद साहब नें ये बहुत खूब बात भी कही की देश को वर्तमान में जीना होगा , पुरातन विधाएँ अब काम नहीं करेगी , १९४७ के पहले जो स्थितियां थी वो अब नहीं है।  हमें विकास में क्या और किसका के मायने तलाश करनें होंगे।  बुनियादी सवाल ये भी है की क्यों देश का ६०% पैसा कुछ १०% से २०%  लोगों के पास है ? ऐसा क्यों है ? कैसे हुआ ?

देश के युवा को बुनियादी सवालों से दूर ले जाया जा रहा है जो की घातक है।  गरीबी , बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार अगर बुनियादी सवाल नहीं है तो विकास के नाम पर पतन हो जाएगा।  मेरा देश पाकिस्तान और सीरिया नहीं बनना चाहिए।  ये भारत है इसे  वही रहने  देना है। 

कुल मिला कर बात ये है की ये स्पीच सिर्फ ओवैसी को जवाब नहीं था ये एक सवाल था जो देश की युवा अवाम से पुछा गया है।  देश के नाम पर क्या बनाना चाहते हो? बुनियादी सवाल क्या हैं ? आइये खुद से पूछें।

भारत माता की जय !  भारत माता की जय !  भारत माता की जय !  
 




 


गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

एक ख़त शहीद हनुमाथप्पा के नाम !!



हनुमाथप्पा तुम ख़ामख़ाँ चले गए , एक एहसान कर गए , कई वीरों के साथ तुम भी देश के लिये अपने परिवार की चिंता किये बगैर जान दे गए। जिस देश के लोग अपनों में ही बांटे जा चुके हों उनको एक समझने की भूल की तुमने। यहाँ भारतीय होने से पहले कोई हिन्दू है , कोई मुसलमान है , कोई सिक्ख तो कोई ईसाई।  देश भूल चूका है की भारत नाम पाने के लिए और एक देश बनने के लिए हज़ार साल लगे और जो देश बना उसके लिए हर तबके के लोगों नें अपना खून भी बहाया।  हनुमाथप्पा तुम उस देश के लिए जान लूटा बैठे जो आज कल लूटेरों को राज करने के लिए चुन लेता है।  तुम्हारा परिवार इन अपराधी नेताओं के सानिध्य में कितना सुरक्षित होगा जब तुम माइनस ४५ डिग्री में अपनी हड्डियां गला रहे थे ? सियाचीन में ५ दिन बर्फ के नीचे दबे रहने के बाद भी जो उम्मीद तुम्हे ज़िंदा रहने की ताकत दे रही थी वो उम्मीद आज कई लोगों को अपने घर में बैठ के भी नहीं है , पता नहीं कौन क्या अफवाह फैला दे और एक भीड़ घर में घुस कर हैवानियत के साथ कुचल दे. तुम काल्पनिक कथा के हीरो हो, हनुमाथाप्पा।

तुम्हे शायद पता ना हो , जब तुम कई दिनों से ठण्ड में  अकड़ कर सिर्फ सफ़ेद बर्फ देख पा रहे थे और किसी भी त्यौहार से वंचित थे तब देश में अहिंसा से आज़ादी दिलवाने वाले गांधीजी की हत्या का जश्न भी मना , और देश चुप रहा। तुम्हारे ही देश के शिक्षा संस्थानों में आतंकवादी के समर्थन में नारे भी सुने जा रहे हैं, देश फिर भी चुप ही रहा । ये धर्म की हार और नफ़रत की जीत है।  सालों से फैलाए जा रहे झूठ का असर है।  मगर झूठ के पांव कहाँ होते हैं , जब सच जीतेगा तब तक कहीं देर ना हो जाए।   तुम्हे दुःख होगा ये जान कर की तुम्हारे मृत शरीर को फेसबुक पर वाइरल कर  के भी शायद लाइक बटोरे जाएंगे , एक दिन के लिये तुम्हारी फोटो को प्रोफाइल पिक्चर बना के देश भक्ति दिखाई जाएगी।  काश तुम्हारी शहादत भी डिजिटल ही होती, क्युकी वो शायद डिजिटल माध्यमों तक ही सीमित रह जाएगी। हनुमाथाप्पा , आजकल तुम्हारे भारत में दिल तक सिर्फ नफरत पहुंचाई जाती है।

हनुमाथाप्पा, शायद तुम्हे सरहदों पर रह कर ये पता ना पड़ा हो की आज नेताओं ने क्रन्तिकारी भी बाँट लिए हैं , कुछ नें गांधी को अपना कहा तो कुछ नें भगत सिंह को मगर जिस भारत का सपना गांधी और भगत सिंह नें देखा था वो भारत देश दोनों के पास नहीं है।  कुछ क्रांतिकारियों का ज़िक्र सिर्फ इसलिए नहीं है क्युकी वो एक विशेष वर्ग या जाति से आते हैं। हनुमाथप्पा तुम्हे बतादूं की अब तुम्हारे देश में फ़िल्में भी कलाकार के धर्म को देख के देखी जाने लगी है।

हनुमनतप्पा तुम अपने साथियों के साथ उस भारत के लिए शहीद हो गए जो खुद उस दुश्मन की तरह होता जा रहा है जिसकी ओर तुम्हारे जैसे सेना के वीर जवान बन्दुक और भौहें ताने रहते हैं।  तुम पांच दिन बर्फ में उम्मीद के सहारे ज़िंदा रहे पर हम नहीं सुधरेंगे, देश को धर्म के नाम पे जला डालेंगे, भ्रष्टाचार कर के देश का नाम विदेशों तक बदनाम कर देंगे , नेताओं के नाम पे बलात्कारी, खूनियों और चोरों को चुनते रहेंगे ।मुझे उम्मीद है अगले जन्म में तुम देशवासियों को तोड़ने वालों और नफरत के बीज बोने  वालों के खिलाफ लड़ोगे।

देशवासियों को देश पर गर्व इसवजह से रहेगा की तुम्हारे जैसे वीर जवान हम नामुरादों की रक्षा के लिए जान लूटा देते हैं।  हम तो नफरत को प्यार करने और शेयर करनें में व्यस्त थे फिर अचानक तुम बता गए की जाति धर्म से ऊपर राष्ट्रवाद है जो सभी जाति  धर्म के शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों में था जो देश बनाने के लिए लड़े मरे।
तुम्हे प्यार के त्यौहार 'वेलेंटाइन डे ' की बधाई।  जानता  हूँ भारत का त्यौहार नहीं है , मगर क्या करें तुम्हारा देश अभी नफरत के त्यौहार मनाने में व्यस्त है। जिस देश के लिए तुमने जान दी वो त्योहारों का देश था , विविधताओं में एकता का देश, तुम्हारा भारत! मेरा भारत!

फिर मिलेंगे,

तुम्हारा कर्ज़दार , एक भारतीय


शनिवार, 18 जुलाई 2015

मौन फिर से

विपक्ष कितनी सुकून देने वाली जगह होती है , वहां रह कर आप हर नीति का विरोध करते हैं चाहे वो जनहितैषी क्यों न हो। आप विरोध को ही विपक्ष धर्म मान लेते हैं और ४० साल के अपने विपक्ष कार्यकाल से विपक्ष की एक गलत परिभाषा गढ़ देते हैं।  जनता में तब निराशा का संचार होता है जब आप खुद सत्ता में आते हैं और वो ही राह अपनाते हैं जिनका पुरज़ोर विरोध किया करते थे।
बात घोटालों की है , जब कांग्रेस के घोटालों को जनता ने लूट माना और बीजेपी को मौका दिया तो एक आशा के साथ उनलोगों नें भी मतदान किया जो इस छद्म लोकतान्त्रिक व्यवस्था में अपना विश्वास खो चुके थे।  उन्हें मोदी जी में एक बहुत ही स्वाभिमानी और देशभक्त नेतृत्व दिखा जिसकी आज भी देश को ज़रूरत है। जब मोदी जी ने कहा कि ना खाऊंगा ना खाने दूंगा तो सबमे एक सकारात्मकता का संचार हो गया और लगा की आशाएं बस पूरी होने ही वाली हैं।
विगत कुछ महीनों में जिस प्रकार से एक के बाद एक घोटाले सामने आ रहे हैं लगता है मोदी सरकार बहुत जल्द कांग्रेस के द्वारा स्थापित भ्रष्टाचार के मापदंडों को पछाड़ देगी। तीन मुख्यमंत्री खुद सवालों  घेरे में हैं , सुषमा स्वराज जैसी कद्दावर नेत्री भी सवालों के जवाब देनें के लिए उपलब्ध नहीं है। शिक्षा मंत्री की शिक्षा का ही विवादस्पद होना एक बहुत बड़ी परेशानी की ओर इंगित करता है। व्यापम घोटाला जिसमें गवाहों की विवादस्पद मौत हो रही है जिसे जनता आसानी से हत्या मान रही है उसमें भी जवाब और उचित कार्यवाही अपेक्षित है।
उपरोक्त सभी प्रकरणों में हमारे बोलने वाले प्रधानमंत्री की चुप्पी बड़ी खलती है क्युकी वोट एक प्रभावशाली और जवाबदेह नेतृत्व के लिये दिया गया था। व्यापम में एक पूरी पीढ़ी के अरमानों और मेहनत का दमन हुआ है और जो लोग काबिल नहीं है उनके हाथों में जनता का जीवन है।

सरकारी महकमों में जब तक एक चपरासी और बाबू उपरवालों के कलेक्शन एजेंट बनकर लूटना बंद नहीं करेंगे तब तक खाना न सही इसे चखना ज़रूर माना जाएगा। अगर भ्रष्टों को सज़ा अब भी नहीं हुई तो क्या फायदा होगा हमें एक मज़बूत सरकार चुनने का।  पूर्ण बहुमत का फायदा ही क्या जब हर वादा जूमला साबित हो जाए।

देश देख रहा है क्युकी ये नई ६५% युवाओ की पीढ़ी परिणाम चाहती है , जल्द से जल्द।  पिछले साठ सालों की दुहाई इसके गले नहीं उतरेगी।  बाकि आपकी मर्ज़ी क्युकी परिवर्तन की राह में कब लोग विकल्प तलाशनें लगें कोई नहीं जानता। 

धन्यवाद !

रविवार, 1 मार्च 2015

दिल्ली गाथा !

नमस्कार ! अलोकप्रियता कभी भी हो सकती है।  आज लोग प्रक्टिकल भी है और आशावादी भी।  मोदी जी की जो आंधी चली थी उसमे आशावाद का बड़ा योगदान था।, मोदी जी आशावाद का प्रतीक थे और अब भी है।  उनके भाषणों में समस्याओं के साथ साथ समाधान का समावेश रहता था लोग प्रेरित भी हुए।  पर दिल्ली के नतीजे उन्ही आशावादी लोगों के प्रक्टिकल होने का सबूत है जिन्होंने मोदी जी को बाजे गाजे के साथ सत्ता सौपी थी।  आज लोगों को काम करने के वादे के साथ साथ काम करते हुए भी दिखना चाहिए वरना उनमे एक संशय पैदा होते देर नहीं लगाती।

शास्त्रों एवं इतिहास की बात करें तो अहंकार भारतीयों को बिलकुल पसंद नहीं है इसी लिए कांग्रेस युग का अंत हुआ।  बीजेपी भी सभी ओर अपनी विजय पताका फहराते हुए जब दिल्ली पहुंची तो वो ही अहंकार दिखा जो कुछ महीनों पहले जनता नकार चुकी थी।  एक छोटी सी पार्टी को कुचल डालने की ख्वाहिश और अतिआत्मविश्वास से अभियान से शुरुआत ही गलती रही।  सारे सांसद जो अपने क्षेत्र की जनता के प्रतिनिधि है जनता को छोड़ कर दिल्ली में प्रचार को बुलाने पड़े यहाँ तक की करदाताओं के पैसे से काम करने वाले मंत्रियों का देश छोड़ कर दिल्ली में प्रचार करना किसी को नहीं भा रहा था।  ताबूत में आख़री कील जब लगी जब खुद माननीय प्रधानमंत्री इसमें कूद पड़े।

आम आदमी पार्टी (आप) के कहीं से चुनाव न लड़ दिल्ली पर ध्यान केंद्रित करने को उनका डर मान लेना भी बड़ी गलती रही।आप ने ज़मीन पर खूब मेहनत की और क्युकी नीयत पर किसी को कभी शक नहीं था, लोगों का झुकाव स्वाभाविक था।  ४९ दिन की सरकार के ताने मारने वाले शायद दिल्ली से बाहर वाले ही होंगे क्युकी दिल्लीवासियों को सरकार का वो ट्रेलर बहुत पसंद आया और वो पूरी फिल्म देखना चाह  रहे थे। बीजेपी और आप के कार्यकर्ताओं में बहुत बड़ा अंतर है जो इस चुनाव में साफ़ हुआ। आप में ऐसा कोई कार्यकर्ता नहीं है जिसकी जीविका का साधन राजनीती है।  कोई छात्र था , कोई दुकानदार , कोई नौकरी से कुछ समय की छुट्टी ले आया था , ऐसे लोगों के प्रति झुकाव स्वतः ही है।

भारतीयों को नकारात्मकता पसंद मानाने वालों के मुंह  पर भी करारा तमाचा ही है क्युकी जहाँ एक तरफ अपने पद की गरिमा को ताक पर रख  प्रधानमंत्री और मंत्री नकारात्मक भाषण दे रहे थे वहीँ वो जो झूठे और आधारहीन आरोप लगा रहे थे वो उनके खुद के परिप्रेक्ष में ज्यादा जंच रहे थे। पैसे का हिसाब मांगने के पहले अगर खुद के पैसों का हिसाब दे देते तो बात अलग होती। आप स्थिर दिखी और जनता से संवाद भी बखूबी किया वो भी बहुत कम पैसों में।   किरण बेदी को अचानक एक ईमानदार चेहरे के रूप में लाना भी दिल्ली बीजेपी में ईमानदार नेताओं की शून्यता का परिचायक साबित हुई और फिर किरण बेदी का रवैया करेला दूजा नीम चढ़ा साबित हुआ।

राजनीतिक दलों को समझना होगा की जहाँ गरीब और मध्यम  वर्ग आज़ादी के ६६ सालों  बाद भी सड़क , पानी और बिजली जैसी समस्याओं से लड़ रहा है वहां व्यक्तिगत आरोप और जहरीली साम्प्रदायिकता का असर नहीं होता।  ये वो ही लोग थे जिन्होंने मोदी जी को पूरा दिल्ली दिया था और अब भी वो ही है जो बीजेपी को ऐतिहासिक न्यूनतम सीट तक ले गई। जो हमारे मुद्दों की बात करके एक रोडमैप देगा उसे सत्ता देंगे , निचोड़ यही है।  भूखे पेट भजन नहीं होते। मीडिया को पूरी तरह खोल के रख दिया फिर भी बड़ी बेशर्मी से आज भी भरमाने में लगी है। कितना डिसकनेक्ट है , कितनी दूरी है।  अनुरोध ये ही है की अहंकार छोड़ दो , अब नहीं चलेगा।  शायद इसी वजह से केजरीवाल ने जीतने के बाद अपने पहले भाषण में अहंकारी ना हो जाने का आवाह्न किया।

जितनी जल्दी समझे उतना अच्छा है देश के लिए वार्ना चुनाव और भी है।

धन्यवाद ! 

शनिवार, 3 जनवरी 2015

विकास पथ !

नमस्कार सभी को।  काफी समय हुआ कुछ लिखे , देश में बहुत कुछ हो रहा था और मै उस बहुत कुछ में 'विकास ' खोज रहा था।  साधु , साध्वी, महंतो की उच्चस्तरीय भाषा से ओतप्रोत मै सोच रहा था की क्या सच में ये भगवान से मिलवाते होंगे या पथप्रदर्शक होंगे , जिनके होंगे उनके साथ मेरी अपार सहानुभूति। फिर मैंने देखा लोग अपने घर वापस आ रहे है , सोचा शायद वादे के अनुसार कश्मीरी पंडित घर पहुंच गए होंगे पर यहाँ घर का एक और पर्यायवाची सुनने को मिला। गांधीजी की तस्वीर अपने दफ्तर में लगाने वाले हमारे लोकप्रिय प्रधानमंत्रीजी के साथी तो गांधीजी के हत्यारे को देशभक्त ठहरा रहे थे। शायद वो गाँधीयो के विरोध की बयार में बह निकले , गलती भी नहीं है क्युकी  उन्हें ये ही सिखाया गया है । जब भी कोई विवादस्पद बयान आता मै उसके माफीनामे के इंतज़ार में रहता और अधिकतर मौकों पर मै निराश नहीं हुआ , सन्देश के विस्तार का ये गजब तरीका देखा क्युकी हमारे देश के पार्टी सपोर्टर उस घृणित बयान को माफीनामा आने से पहले तक इतना फैला चुके होते हैं की उसे वापस लेने की गुंजाईश का होलिका दहन हो चूका होता है और ब्रेकिंगन्यूज़ पिपासु हमारे देश की जनता बस बयान पे अटकी रह जाती है.

हमारी पवित्र गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने की बात पर मै थोड़ा चौंक  गया , मै  सोचता था हमारी गीता सारे विश्व के लिए सन्देश है तो उसे देश की सीमा में बाँधने की क्या ज़रुरत आन पड़ी।  संविधान तो पहले से ही राष्ट्रीय  ग्रन्थ है ही। गीता भी राष्ट्रीय हो गई तो क्या हम भी युद्ध कर के हर समस्या का समाधान करेंगे ? पांडवो के पास तो भगवान थे हम तो भगवान के इंतज़ार में है। संस्कृत में जैसे तैसे पास होने वाले हम छात्र उसे कितना बोल पाएंगे ये बड़ा पेचीदा विषय होगा। अंतराष्ट्रीय बाजार में तेल के भाव जब ४०% तक सस्ते हुए तो मै  बड़ी आशा से ४०% की कीमतों में गिरावट के सपने संजोने लगा पर ये क्या ये तो बस ६ -७ रूपये पर सिमट गया, पर चलो कम  तो हुआ , हम भारतीयों को कौन सा हमारा हक़ मिलने की आदत है इस एहसान का ही शुक्रिया कर मै आगे बढ़ा।

जो लोग तेल के दाम बढ़ने का हवाला दे कर दूध और सब्ज़ियों जैसी चीज़े महंगी होने की दुहाई दे रहे थे मुझे उनका ख़याल आया और मै चला कुछ खरीदने। पर यहाँ सब्ज़ी रानी और दूध राजा नीचे आने को तैयार नहीं थे , जो दुर्गति पहले थी वो अब भी है।  किसी ने ये भी कहा की भाव सिर्फ बढ़ने के लिए होते है कम होने के लिए नहीं , काश मेरी पगार भी इन राजा रानी से कुछ सीख पाती। और फिर हमारे देश में तो तथाकथित एम आर पी से ऊपर बेचने का रिवाज़ है , लेना हो तो लो वरना रास्ता नापो।   मुझमे अब भी काफी उम्मीदें थी , पता था अब पड़ौसी मुल्क कुछ मज़ाल न कर पाएगा पर मेरे सपने अगले ही दिन टूटे जब देश की एकमात्र देशभक्त प्रजाती हमारी  सेना के जवानों के शहीद होने की खबर से सामना हुआ , यहाँ भी कुछ न बदला।

हम भारतीय आशावान है और अपनी समस्याओं के समाधान की आशा हमेशा रहेगी।  हम आशावान जीते हैं और आशा में ही परलोक सिधार जाते हैं। स्वच्छ भारत की आशा तो मुझे निकट भविष्य में ही पूरी होती दिखाई दी और मै भी मोदीजी के साथ इस अभियान में अपनी तरफ से व्यक्तिगत योगदान के लिए आतुर हो गया।  वैसे तो मै  पहले से सफाई प्रिय  था पर अब और जागरूक हो गया था। पर ये क्या मेरे कई  अज़ीज़ दोस्त जो मोदी भक्त कहलाने में गर्व महसूस करते है और सारी घृणा फैलाने वाली खबरों को अपने शिक्षा पे खर्च हुए पैसे का उपयोग कर सोशल मीडिया पर प्रचारित करते हैं , शायद इस अभियान से विमुख हैं या दीवारों पर अपनी पीक से चित्रकारी करना उनका शौक है। एम एफ  हुसैन का हिन्दू वर्ज़न भी तो होना चाहिए। हर सार्वजनिक कोना इनके लिए पीकदान या शौचालय है , पर हाँ सार्वजनिक स्थान पर किसी बालिग़ लड़के लड़की को देख कर इनके धर्म पर आंच आ जाती है और ये धर्मरक्षा के लिए हिंसा कर डालते है।

अरे ! ये सब पढ़ते पढ़ते क्या आप मुख्य मुद्दे से भटक गए या भूल गए ? अगर हाँ तो बस मेरी स्थिति भी ये ही हो गई है।  मै भी निकला था डेवलपमेंट उर्फ़ विकास के  पहले  कदम की तलाश में , काले धन के आकड़ों में अपने चुकाए टैक्स के वादे के अनुसार हिस्से के लिए , चोरों  के नाम के लिए , पुराने आरोपियों को जेल में देखने की पहल की आशा में , किसानों के समृद्धि की ओर कदम की आस में (बजट कटौती नहीं), भ्रष्टाचार मुक्त और सामाजिक सौहार्द्र युक्त समाज की आस में , उत्तरदायी सरकारी नौकरों और सवालों के जवाब देने वाले नेताओ की तलाश में।

किसी अतिमहत्वाकांक्षी और मोहक मेनिफेस्टो सा लगता है न जिसे देख हम ५ साल के लिए बटन दबा आते हैं ? समय मिले तो सोचो ।

धन्यवाद !

बुधवार, 24 सितंबर 2014

मेरा धर्म मेरा देश !

मै बड़ा धार्मिक व्यक्ति हूँ और अच्छे लोगो की संगति एवं आला दर्ज़े (महंगी नहीं )की स्कूली शिक्षा से समझा हूँ कि 'मज़हब नहीं सीखता आपस में बैर रखना ' . हिन्दू धर्म का होने पर गर्व की अनुभूति भी होती है क्युकी हमारा धर्म ही हमारे देश को त्यौहारो का देश बनता है , सौहाद्र और सहिष्णुता का संचार करता है। धर्म की ज़रुरत मानव को आपस में जुड़े रहने के लिए पड़ी होगी।  इसमें जीवन दर्शन और जीवन यापन के आदर्श भी हैं जो हमें भ्रमित होने से बचाने के लिए हैं। मेरे धर्म ने कभी नहीं कहा की वो सर्वश्रेष्ठ है पर इसका पूर्णरूपेण पालन  करने वाले श्रेष्ठ चरित्र के ज़रूर बन जाते है।  श्रेष्ठ चरित्र महिलाओ , माता पिता, अन्य धर्मों और सभी प्राणियों का सम्मान करने में है क्युकी ये धर्म ही हमें नरभक्षी और वहशी तत्वों से अलग करता है , अगर आप इस प्रकार के तत्वों को खुद में या किसी और में देखते है तो समझिए की ये धर्महीनता या धर्म  को गलत तरीके से परिभाषित करने का परिणाम है।

इसे समझना आकाश में बादलों में आकृतियों की कल्पना करने जैसा है इसी लिए शायद इसकी व्याख्याओं में भयंकर त्रुटियाँ है और इसके व्याख्याकार हमें अपने व्यक्तिगत हितों के अनुसार भरमा भी देते हैं। चाणक्य ने जब ये कहा की राज धर्म किसी भी धर्म से बड़ा है तो सच भी लगा क्युकी अपनी मातृभूमि के सम्मान की रक्षा हम अपने दैनिक जीवन में कर के अच्छे चरित्र को प्राप्त कर लेते हैं और किसी भी धर्म का उद्देश्य ये ही तो है। हमारे धर्म की व्याख्या में त्रुटियाँ न होती तो क्या हम खून के प्यासे होते, क्या हम सभी का सम्मान न करते , बलात्कार , भ्रष्टाचार और खूनियो को गले न लगाते।  ये सब तो मेरा धर्म नहीं सीखता।

हाल ही के घटनाक्रमों को ध्यान में रखें तो समस्याओं की मूल जड़ को समझा जा सकता है।  हमारी आस्था पर सदियों से करारे प्रहार होते आए हैं क्युकी सभी धार्मिक किताबों की अभिगम्यता होने के बावजूद हमें एक स्वयंभू संत , गुरु , बाबा या योगी की ज़रुरत होती है जिसे हम आँखे बंद करके अपनी सारी समझ और अक्ल समर्पित कर देते हैं। भेड़ की तरह भीड़ के पीछे सर झुकाए निकल पड़ते हैं। ये भूल जाते हैं  की संत , गुरु , बाबा या योगी भीड़ में नहीं पाए जाते , ये लोग महंगी गाड़ियों और आलिशान बंगलों में नहीं होते है , ये नेता भी नहीं होते हैं न ही कभी किसी के लिए नफ़रत भरे बोल बोलते हैं , भगवानों की लड़ाई भी नहीं लड़ सकते ।  ये वो फ़कीर सन्यासी होते है जो अपनी व्यक्तिगत जिंदगी का त्याग कर लोगो के लिए और ईश्वर के लिए जीते हैं। लोगों के लिए जीवन जीने की प्रेरणा होते है जो अपनी जीवन शैली से इसके अनुसरण की प्रेरणा देते हैं। क्या आपके गुरु अनुसरणीय हैं ? ज़रा सोचिये।

ये एक अनकहा सत्य है की धर्म को हम अपनाते है और चूँकि हमें  कई धर्मों के इकोसिस्टम में रहने का सौभाग्य प्राप्त है , हम सभी धर्मों से कुछ सीख सकते हैं जिनकी व्याख्या अलग अलग परिस्थितियों में की गई है। हम ये भी देख सकते हैं की हमारे धर्म के योगी , गुरु  संतों की जीवनशैली और व्यवहार गीता/ कुरान / बाइबिल में लिखे अनुसार है भी या नहीं। धर्म ने प्रेम की सीमा को संकुचित नहीं किया पर इसके ठेकेदारों ने जरूर करदिया। धर्म ने हिंसा का प्रतिकार किया पर हज़ारों लाखो मासूम धार्मिक हिंसा का शिकार हो जाते हैं। क्या किसी ने किसी धर्म के ठेकेदार को इस हिंसा का शिकार होते देखा है ? मैंने तो नहीं देखा।  वो कौन थे जो अब नहीं रहे ? क्या उनके परिवारों का भरण पोषण धर्म के ये अरबपति ठेकेदार कर रहे हैं ? उन परिवारों की तात्कालिक परिस्थिति क्या है ? ज़रा सोचिये और देखिये।

राजधर्म की उपेक्षा से हमारे देश ही अंदर से खोखला करने वाले नफरत के ज़हर का संचार हो रहा है। धर्म की अमानवीय व्यख्या  ही हमें वहशी और अमानव  बना रही है।  धर्म और आध्यात्म की जटिल गहराइयों को समझने की जगह हम राजनीति से प्रेरित नफरत को हवा देने में लगे है।  इसके परिणाम भयंकर है क्युकी मैंने इस पीढ़ी के माता पिता को अपने छोटे बच्चों को नफ़रत की शिक्षा देते देखा है क्युकी वे ही प्रतिबिम्ब और प्रथम शिक्षक हैं उन बालमनों के  लिए । हमारी शिक्षा से हम इंजीनियर , डॉक्टर और मैनेजर तो बन रहे है पर इसका  इंसान बनाने में योगदान नाममात्र भी नहीं लगता है क्युकी मैंने पढ़े लिखों को सोशल मीडिया पर नफ़रत फैलाते देखा है।  हर नफ़रत भरी बात को बिना सत्यता जाने साझा करने को आतुर ये मेरे ६५% पढ़े लिखे युवा भाई बहन किस मजबूत देश का निर्माण करने वाले हैं ये तो भगवान ही जाने। आतंकवाद को हटाने के लिए खुद आतंकवादी बनाना ज़रूरी नहीं है और किसी अपराधी को उसके धर्म के आधार पर आंकना भी नहीं । याद रखिये रावण भी एक ब्राह्मण था पर उसकी प्रवृत्ति आसुरी थी।

धर्म पुराना हो चूका है , कुरीतियाँ अब भी है।  जीवन दर्शन भी बदल गया है।  जब इंसान सुर से असुर हो गया तो धर्म पुराना क्यों ? सभी धर्मों की प्रेम रूपी व्याख्या ही समाधान है वरना नास्तिकों से ज्यादा भ्रमित और ज़हरीला आस्तिक राजधर्म और मानवता  के लिए खतरा है।

राजधर्म ही सबसे बड़ा धर्म है।  कृपया अपने धर्म की पवित्र पुस्तकों को खुद पढ़े वहाँ नफ़रत नहीं प्रेम ही मिलेगा।    संत और गुरु की परिभाषा भी पढ़े या  गूगल कर लें। किसी कपटी चरित्रहीन ढोंगी का सहारा जीवन दर्शन और चरित्र निर्माण के लिए लेना देशद्रोह से कम  नहीं है इससे आगे चल कर आपकी आस्था को ही ठेस पहुंचेगी, क्युकी अंतरात्मा से झूठ न बोल पाओगे और बौखला कर अधर्मी हो जाओगे  । संत , योगी और गुरु इतनी आसानी से नहीं पाए जाते न ही दूकान लगाए बैठे होते है, जीवन को सही राह पे लाने और धर्म की मानवीय व्याख्या करने वाले ईश्वर और अल्लाह के बंदे को ढूंढना भी तपस्या ही है। ईश्वर को समझना है तो मानव बने और मानवता की राह पर चलें।

धन्यवाद !