गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

मतदाता का दायित्व !!

लोकतंत्र में मतदाता क्या क्या काम होना चाहिए इस पर मतदाता ने  कभी सोचा न नेताओ ने।  क्या एक मतदाता को किसी चहरे को चुनना चाहिए या   किसी विचारधारा को या उसे सिर्फ अपने क्षेत्रीय  नेता को चुनना चाहिए ? प्रश्नो का उत्तर कौन देगा ? क्या कभी कोई टीवी पे बहस  चाहेगा ? इलेक्शन कमीशन को क्या जागरूकता फैलानी चाहिए ? सिर्फ वोट देने का पूछने भर से हो जाएगा क्या?

राजनीती में  अपराधियो का आना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है , सोचने का विषय तो ये है की ये वहां पहुंचे कैसे। क्या राजनीतिक पार्टियो को इनके हार जाने का तनिक भी डर  नहीं है , ऐसा क्यों है।  मुझे लगता है ये सब वोटर की करामात है। एक नोटा का अपाहिज विकल्प काफी नहीं है और ये विकल्प आया  भी तो आजादी के ६७ साल बाद , हैरानी की बात है।

राजनीती एक श्रंखला है जिसमे नीचे से चुना हुआ ही देर सवेर ऊपर जाता है।  अगर सिर्फ मतदाता अपने क्षेत्र से एक साफ़ और ईमानदार को चुने तो वो ही आगे चल कर एक साफसुथरी सरकार दे सकता है।  अपराधियो के चुन कर आने की संभावना जिस दिन समाप्त हो जाएगी उस दिन हमारा समाज , देश और राजनीती समृद्ध हो जाएगी।

किसी व्यक्ति विशेष की आरती उतारना हमारे लोकतंत्र की संस्कृति नहीं है।  मतदाता सवाल पूछे , अपने सवाल , अपने क्षेत्र के सवाल और  जिसका जैसा जवाब वैसा वोट। ये मतदाता का काम नहीं है की केंद्र में कौनसी सरकार आएगी उसका ये काम है की कैसी आएगी। जब सारे अच्छे लोग बहुमत में केंद्र में जाएंगे तो सरकार खुद ब खुद अच्छी ही बनेगी।  एक मतदाता से अच्छा उसके क्षेत्र के नेता को कोई नहीं जनता इसी लिए शुद्दिकरण का एकमात्र ये ही उपाय लगता है की अच्छे तो चुने और सच्चे को चुनें।

चुनाव आते ही धीरे-धीरे मुख्य मुद्दो से बड़ी आसानी से ध्यान भटका दिया जाता है।  भ्रष्टाचार , अपराधीकरण, गरीबी, किसानो की आत्महत्या की बात छोड़ धर्म और संप्रदाय की बात कर बड़ी आसानी से बरगला दिया जाता है।  हम कब सीखेंगे अपनी गलतियों से?  अब तो ईमानदार पर भी शक होता है की ये भी आगे चलकर कहीं  बेईमान हो जाएगा , पर सोचना ये है की ये आगे का रास्ता इतना बेईमान करने वाला बनाया किसने की हमें ही किसी पर भरोसा नहीं होता, क्या हम खुद जिम्मेदार नहीं हैं ?

भारत भाग्य विधाता को भाग्य के बारे में सोचना शुरू कर देना चाहिए , कही देर न हो जाए।
धन्यवाद!!

गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

चुनाव और बदलाव !!

लो भाई चुनाव आ गए!!  क्या अलग है इस बार ? क्यों लग रहा है कि कुछ बदलेगा ? क्यों वोट करने के दिन को छुट्टी मात्र मानाने वाले लोग भी उत्साहित हैं  वोट करने को ? चुनावो से भी कुछ बदला है क्या अपने देश में , सिर्फ पार्टी बदली है जिसने अपने से पहले वाली पार्टी कि परिपाटी को आगे बढ़ाया बस। गरीब अब भी कुछ ख़ास नहीं बदला है १९४७ के गरीब और आज के गरीब में सिर्फ है कि पहले का गरीब आशावान था आज निराशावान।  जिससे पूछो केहता है सब चोर है , लोकतंत्र में निराशा वो भी उनसे जिन्हे ये गरीब ही सबसे ज्यादा वोट देता है और चुन कर भेजता है।  क्यों दो चोर में से एक को चुनना पड़  रहा है ? सोचा है कभी ? क्या ये बदलाव है ?

६५% युवाओ का देश है  हमारा देश , युवा जो बस "आई हेट पॉलिटिक्स " केह के पल्ला झाड़ लेते थे आज सबसे अग्रिम पंक्ति पर है। निराश हो जाता हूँ जब कुछ तथ्यो को देख भ्रम टूट जाता है कि ये चुनाव कुछ अलग है।  विकास कि बात आगे रखने वाली हमारी पार्टिया जैसे जैसे चुनाव करीब आ रहा है जाति और धर्म के नाम पर लोगो को भरमाना शुरू कर चुकी है। नेताओ कि  कहें तो कोई यहाँ पिछड़ा है , कोई हिन्दू , मुस्लिम , यादव जाट है पर अब तक कोई नहीं मिला जो कहे कि वो भारतीय है।  ये ही कारण रहा होगा सैकड़ो साल गुलाम रेहने का , कब बदलाव होगा और हम  स्वतंत्र होंगे ? भ्रष्टाचार के नाम पे लहर का दावा करने वाले अपने घोषणापत्र में इसका उल्लेख करना भी जरुरी नहीं समझते , किया भी तो वो ही ६० साल पुराना जिसका  असर हम देख ही रहे हैं।

किसानो को अपनी फसल का ५०० से १००० रूपये मुआवजा देने का सिर्फ वादा करने वाले ५०० से १००० करोड़ सिर्फ गरीबी हटाने के विज्ञापन पे खर्च कर रहे हैं , क्या मेरे देश के युवा और किसान ने ये नोट किया या बस इस नोट के बदले हरा  नोट लेके अपने ५ साल बड़े सस्ते में बेच देगा ? ८०% गांव में रहने वालो कि बात तो कोई कर ही नहीं रहा और किसी को कोई तकलीफ भी नहीं है , किसान घोषणापत्रों से जैसे गायब हैं  बस 'जय जवान जय किसान ' जैसे नारो में हैं। एक मोबाइल फ़ोन भी बिना ६ महीने गूगल कर न लेने वाला युवा वोट करने के पहले १ घंटा भी जानकारी नहीं जुटता , देश के प्रति ये जस्बा तो विचलित कर देता है क्युकि ये ही ६५% आगे बहुमत होगा।

रुग्ण मानसिकता आज भी हावी है , वो मेरी जात का है।  हम तो कोंग्रेसी / भाजपाई / सपाई / बसपाई है।  कुछ नहीं बदलने वाला।  सब एक ही हैं।  क्या फर्क पड़ता है।  जैसे तर्क देने वालो को कब किसी मनोवैज्ञानिक का सहारा मिलेगा , भगवान् ही जाने।  पुश्तैनी वोटर बड़ा आश्चर्यचकित कर देते है , अंधभक्ति का परिसीमन किसी ने  न किया होगा इसी लिए बढ़ती  जा रही है।   दो शासको के बीच बंटा  मेरा देश छटपटा  रहा है पर इसमें रेहने वालो को इसका कोई इल्म भी नहीं है। जो नेता ५ साल दिखाई भी न दे उसकी भरमाने एवं भड़काने वाली बातो में आ जाने वाले हम कुछ रुक कर सोचते भी नहीं। ५ साल में घर का रंग बदल देने वाले हम  लोग नेता क्यों नहीं बदल देते?  ६० साल पुरानी सड़ांध मारती  पार्टियो को क्यों नहीं बदल देते ? क्यों इतनी निराशा है ? ये सवाल क्या नहीं पूछे जाना चाहिए।

अपराधिक प्रवृति वाले बलात्कारी,  खुनी , डाकू , चोर , भ्रष्टाचारियो से समाज के डर से कोई सम्बन्ध भी न रखने वाले हम भारतीय कैसे उन्ही को अपना प्रतिनिधि बना कर भेज देते है ? अपनी कहूं तो मैं कैसे ३८% दागी प्रतनिधियों वाली एवं विकास का दावा करने वाली पार्टी को वोट दे दूँ , कुछ लोग समझने आए भी पर लगा उन्हें अपनी रुग्णता का उपचार करवाने कि जरुरत है क्युकी वे भ्रष्टाचार , सम्प्रदायिकता , और अन्य  सभी कुरीतियो को एक अभिन्न अंग मानाने को मजबूर कर रहे थे । और ६० साल से ज्यादा शासन करने वाली पार्टी का काम क्या अब तक समझ नहीं आया।  देश को नौकरियों के सृजन से ज्यादा नई  विचारधारा के सृजन कि आवश्यकता है। नौकर बनाना किसी को पसंद नहीं है पर ८०% किसानो का पलायन रोक दे तो तो बहुत कुछ ठीक हो सकता है।  कृषि को  उत्कृष्ट होने कि जरुरत है।  पर हमारे नेता तो उद्योगपति गामी है , पैसा जो वहाँ  से मिलता है।कब हम मालिक बन के वोट करेंगे , जो कि हम हैं ।

बदलाव कि बात तो हो रही है और हमेशा से होती आई है पर क्या बदलना है ये सोचने का विषय है।  सिर्फ सरकार/पार्टी बदलने के लिए वोट करे या देश बदलने के लिए वैसे  इतिहास में देश बदलने के लिए वोट कम ही हुआ है।  कुछ अतिउत्साही चुनाव के नतीजो को आंक कर वोट देते है न कि अपनी पसंद से , विश्वास के साथ कह सकता हु कि उन्हें अपने नेता के बारे में पूर्ण जानकारी होगी भी नहीं।

जो लोग मेरे इस लेख को पढ़े उनसे मेरी यही प्रार्थना है कि वोट उसे दें जिसपर भरोसा हो , जिसके साथ खड़े होने में शर्म न हो क्युकी वो और उसके सहयोगी दागी है , ईमानदारी भी मिल जाएगी , जरा ढूँढना पड़ेगा।  जो हमारे रोजमर्रा के जीवन का सरलीकरण करे व गरीब को रिश्वत देने के लिए साहूकार से कर्ज न लेना पड़े।  विकास कि बात तो करे पर ये भी बताए कैसे और किसका। महंगाई के मुद्दे पर चुनाव लड़  कर विपक्षी पार्टी द्वारा जारी कि गई कीमतो को वापस लेने का भी दावा करे . ये भी बताए कि कही खुद तो काले धन से काम नहीं कर रहा है , क्यों कि काला धन वापस लाना फिर उसके बस कि बात नहीं रह जाएगी . जाति तो कभी नहीं जाएगी पर कही देश हाथो से न चला जाए , अपराधियो के भड़काऊ भाषणो के पीछे भागने से कही ये अपराधीकरण कि आंच हमारी चौखट  तक न आए।  कृपया अपना वोट न बेचें , क्युकी चंद पैसो से आपके और आपके बच्चो के भविष्य कि कीमत नहीं लगाई जा सकती।

मुद्दे और नेता पहचाने , अच्छे चरित्र और विचारो को वोट दें !! धन्यवाद !!

जय हिन्द !!

बुधवार, 2 अप्रैल 2014

निवेदन !!

मेरी इस लिखने कि हिमाकत का असर हुआ भी तो किस पर , खुद मुझ पर।  है न हैरान करने वाली बात।  बात निकाली ही ये बताने के लिए है कि मेरा लिखने का उद्देश्य सिर्फ अपने विचारो को व्यक्त करना और हिंदी को सम्मान देना है , मेरे विचार भी स्वयं मेरे ही लिए है ताकि आने वाले वर्षो में मै  खुद कि मानसिकता में विकास और बदलाव देख सकुं। सच ये भी है कि फेसबुक पर साझा करता हूँ  पर आपको अच्छा न लगे तो छोड़ दीजिए और एक हंस कि भांति  अपने काम कि चीज़ ले के आगे बढ़िए , बढ़ते रहिए।

मेरे कुछ मोदी और राहुल भक्त दोस्तों   को बड़ी ठेस पहुची, केहने लगे इसके बारे में तो लिखते हो उसके बारे में क्यों नहीं।  समझ आ रहा है पत्रकारो का क्या होता होगा, अरे भाई मै  कोई पत्रकार तो नहीं बस मलंग हुँ जो ठीक लगा वो कहा जो नहीं लगा वो भी बता दिया।  आखिर मैंने कब कहा कि सिर्फ मेरे विचार ही सही है।

कृपया मुझे मोदी या राहुल गांधी विरोधी न समझे न ही अरविन्द केजरीवाल समर्थक।  देश हित में जो मुझे एक नागरिक होने के नाते पूरी ईमानदारी से सही लगता है वो ही लिखता हूँ, व्यक्ति पूजा कभी कि नहीं और चापलूसी मुझे आती नहीं। कसम खा रखी  है जिस भी पार्टी का अच्छा इंसान (जिसका अपराध और अपराधी से दूर दूर तक  नाता न हो ) चुनाव में मेरे क्षेत्र से लड़ेगा उसे वोट दूंगा , अब ये पार्टियो के चिंतन का विषय है कि मेरे जैसे कितने सोचने वाले है और वो किसे चुनेंगे कि हमारा वोट उन्हें मिले।

चुनाव का मौसम है , बड़ी जोश कि गर्मी है बस इतना ध्यान रखना इस गर्मी में कही आपसी रिश्ते न झुलस जाए और हमारे नेता हमेशा कि तरह फूट डाल  के शासन कर ही न ले।  आखिर हम ही तो जीतने देंगे।  कभी सोचता हु वो चुनाव कब होगा जब जनता जीतेगी।  खैर हमें क्या। समझ आता है कितना पीड़ादायक होता होगा इस ६६ साल पुराने सिस्टम में थोड़ी सी भी आवाज करना , मेरी थोड़ी आवाज निकल रही है तो मेरे अपनों को पीड़ा हुई।  अच्छा है सरकार तक आवाज नहीं पहुची वर्ना हश्र तो सबको पता ही है, लोकतंत्र ही है न ?

फिर से निवेदन है कि मेरे विचार सिर्फ मेरे लिए है , भूल चूक लेनी देनी माफ़।  और हाँ कृपया ये न सोचे अब नहीं लिखूंगा , सिलसिला चलता रहेगा , जो गलत होगा उसे गलत बताने में कैसा डर और शर्म।  मेरा देश है , जैसा भी है एक दिन आजाद जरुर होगा।

कृपया अपने पसंदीदा नेता के साथ -साथ मुझ अदने  से मित्र को भी अपनी बात केहने कि आजादी का समर्थन दीजिये और कुछ भी दिल पे न लीजिए , अपना तर्क जरुर दीजिए वैचारिक शुद्धि के लिए ।

आपका अपना मित्र ,
अर्पित