लो भाई चुनाव आ गए!! क्या अलग है इस बार ? क्यों लग रहा है कि कुछ बदलेगा ? क्यों वोट करने के दिन को छुट्टी मात्र मानाने वाले लोग भी उत्साहित हैं वोट करने को ? चुनावो से भी कुछ बदला है क्या अपने देश में , सिर्फ पार्टी बदली है जिसने अपने से पहले वाली पार्टी कि परिपाटी को आगे बढ़ाया बस। गरीब अब भी कुछ ख़ास नहीं बदला है १९४७ के गरीब और आज के गरीब में सिर्फ है कि पहले का गरीब आशावान था आज निराशावान। जिससे पूछो केहता है सब चोर है , लोकतंत्र में निराशा वो भी उनसे जिन्हे ये गरीब ही सबसे ज्यादा वोट देता है और चुन कर भेजता है। क्यों दो चोर में से एक को चुनना पड़ रहा है ? सोचा है कभी ? क्या ये बदलाव है ?
६५% युवाओ का देश है हमारा देश , युवा जो बस "आई हेट पॉलिटिक्स " केह के पल्ला झाड़ लेते थे आज सबसे अग्रिम पंक्ति पर है। निराश हो जाता हूँ जब कुछ तथ्यो को देख भ्रम टूट जाता है कि ये चुनाव कुछ अलग है। विकास कि बात आगे रखने वाली हमारी पार्टिया जैसे जैसे चुनाव करीब आ रहा है जाति और धर्म के नाम पर लोगो को भरमाना शुरू कर चुकी है। नेताओ कि कहें तो कोई यहाँ पिछड़ा है , कोई हिन्दू , मुस्लिम , यादव जाट है पर अब तक कोई नहीं मिला जो कहे कि वो भारतीय है। ये ही कारण रहा होगा सैकड़ो साल गुलाम रेहने का , कब बदलाव होगा और हम स्वतंत्र होंगे ? भ्रष्टाचार के नाम पे लहर का दावा करने वाले अपने घोषणापत्र में इसका उल्लेख करना भी जरुरी नहीं समझते , किया भी तो वो ही ६० साल पुराना जिसका असर हम देख ही रहे हैं।
किसानो को अपनी फसल का ५०० से १००० रूपये मुआवजा देने का सिर्फ वादा करने वाले ५०० से १००० करोड़ सिर्फ गरीबी हटाने के विज्ञापन पे खर्च कर रहे हैं , क्या मेरे देश के युवा और किसान ने ये नोट किया या बस इस नोट के बदले हरा नोट लेके अपने ५ साल बड़े सस्ते में बेच देगा ? ८०% गांव में रहने वालो कि बात तो कोई कर ही नहीं रहा और किसी को कोई तकलीफ भी नहीं है , किसान घोषणापत्रों से जैसे गायब हैं बस 'जय जवान जय किसान ' जैसे नारो में हैं। एक मोबाइल फ़ोन भी बिना ६ महीने गूगल कर न लेने वाला युवा वोट करने के पहले १ घंटा भी जानकारी नहीं जुटता , देश के प्रति ये जस्बा तो विचलित कर देता है क्युकि ये ही ६५% आगे बहुमत होगा।
रुग्ण मानसिकता आज भी हावी है , वो मेरी जात का है। हम तो कोंग्रेसी / भाजपाई / सपाई / बसपाई है। कुछ नहीं बदलने वाला। सब एक ही हैं। क्या फर्क पड़ता है। जैसे तर्क देने वालो को कब किसी मनोवैज्ञानिक का सहारा मिलेगा , भगवान् ही जाने। पुश्तैनी वोटर बड़ा आश्चर्यचकित कर देते है , अंधभक्ति का परिसीमन किसी ने न किया होगा इसी लिए बढ़ती जा रही है। दो शासको के बीच बंटा मेरा देश छटपटा रहा है पर इसमें रेहने वालो को इसका कोई इल्म भी नहीं है। जो नेता ५ साल दिखाई भी न दे उसकी भरमाने एवं भड़काने वाली बातो में आ जाने वाले हम कुछ रुक कर सोचते भी नहीं। ५ साल में घर का रंग बदल देने वाले हम लोग नेता क्यों नहीं बदल देते? ६० साल पुरानी सड़ांध मारती पार्टियो को क्यों नहीं बदल देते ? क्यों इतनी निराशा है ? ये सवाल क्या नहीं पूछे जाना चाहिए।
अपराधिक प्रवृति वाले बलात्कारी, खुनी , डाकू , चोर , भ्रष्टाचारियो से समाज के डर से कोई सम्बन्ध भी न रखने वाले हम भारतीय कैसे उन्ही को अपना प्रतिनिधि बना कर भेज देते है ? अपनी कहूं तो मैं कैसे ३८% दागी प्रतनिधियों वाली एवं विकास का दावा करने वाली पार्टी को वोट दे दूँ , कुछ लोग समझने आए भी पर लगा उन्हें अपनी रुग्णता का उपचार करवाने कि जरुरत है क्युकी वे भ्रष्टाचार , सम्प्रदायिकता , और अन्य सभी कुरीतियो को एक अभिन्न अंग मानाने को मजबूर कर रहे थे । और ६० साल से ज्यादा शासन करने वाली पार्टी का काम क्या अब तक समझ नहीं आया। देश को नौकरियों के सृजन से ज्यादा नई विचारधारा के सृजन कि आवश्यकता है। नौकर बनाना किसी को पसंद नहीं है पर ८०% किसानो का पलायन रोक दे तो तो बहुत कुछ ठीक हो सकता है। कृषि को उत्कृष्ट होने कि जरुरत है। पर हमारे नेता तो उद्योगपति गामी है , पैसा जो वहाँ से मिलता है।कब हम मालिक बन के वोट करेंगे , जो कि हम हैं ।
बदलाव कि बात तो हो रही है और हमेशा से होती आई है पर क्या बदलना है ये सोचने का विषय है। सिर्फ सरकार/पार्टी बदलने के लिए वोट करे या देश बदलने के लिए वैसे इतिहास में देश बदलने के लिए वोट कम ही हुआ है। कुछ अतिउत्साही चुनाव के नतीजो को आंक कर वोट देते है न कि अपनी पसंद से , विश्वास के साथ कह सकता हु कि उन्हें अपने नेता के बारे में पूर्ण जानकारी होगी भी नहीं।
जो लोग मेरे इस लेख को पढ़े उनसे मेरी यही प्रार्थना है कि वोट उसे दें जिसपर भरोसा हो , जिसके साथ खड़े होने में शर्म न हो क्युकी वो और उसके सहयोगी दागी है , ईमानदारी भी मिल जाएगी , जरा ढूँढना पड़ेगा। जो हमारे रोजमर्रा के जीवन का सरलीकरण करे व गरीब को रिश्वत देने के लिए साहूकार से कर्ज न लेना पड़े। विकास कि बात तो करे पर ये भी बताए कैसे और किसका। महंगाई के मुद्दे पर चुनाव लड़ कर विपक्षी पार्टी द्वारा जारी कि गई कीमतो को वापस लेने का भी दावा करे . ये भी बताए कि कही खुद तो काले धन से काम नहीं कर रहा है , क्यों कि काला धन वापस लाना फिर उसके बस कि बात नहीं रह जाएगी . जाति तो कभी नहीं जाएगी पर कही देश हाथो से न चला जाए , अपराधियो के भड़काऊ भाषणो के पीछे भागने से कही ये अपराधीकरण कि आंच हमारी चौखट तक न आए। कृपया अपना वोट न बेचें , क्युकी चंद पैसो से आपके और आपके बच्चो के भविष्य कि कीमत नहीं लगाई जा सकती।
मुद्दे और नेता पहचाने , अच्छे चरित्र और विचारो को वोट दें !! धन्यवाद !!
जय हिन्द !!
६५% युवाओ का देश है हमारा देश , युवा जो बस "आई हेट पॉलिटिक्स " केह के पल्ला झाड़ लेते थे आज सबसे अग्रिम पंक्ति पर है। निराश हो जाता हूँ जब कुछ तथ्यो को देख भ्रम टूट जाता है कि ये चुनाव कुछ अलग है। विकास कि बात आगे रखने वाली हमारी पार्टिया जैसे जैसे चुनाव करीब आ रहा है जाति और धर्म के नाम पर लोगो को भरमाना शुरू कर चुकी है। नेताओ कि कहें तो कोई यहाँ पिछड़ा है , कोई हिन्दू , मुस्लिम , यादव जाट है पर अब तक कोई नहीं मिला जो कहे कि वो भारतीय है। ये ही कारण रहा होगा सैकड़ो साल गुलाम रेहने का , कब बदलाव होगा और हम स्वतंत्र होंगे ? भ्रष्टाचार के नाम पे लहर का दावा करने वाले अपने घोषणापत्र में इसका उल्लेख करना भी जरुरी नहीं समझते , किया भी तो वो ही ६० साल पुराना जिसका असर हम देख ही रहे हैं।
किसानो को अपनी फसल का ५०० से १००० रूपये मुआवजा देने का सिर्फ वादा करने वाले ५०० से १००० करोड़ सिर्फ गरीबी हटाने के विज्ञापन पे खर्च कर रहे हैं , क्या मेरे देश के युवा और किसान ने ये नोट किया या बस इस नोट के बदले हरा नोट लेके अपने ५ साल बड़े सस्ते में बेच देगा ? ८०% गांव में रहने वालो कि बात तो कोई कर ही नहीं रहा और किसी को कोई तकलीफ भी नहीं है , किसान घोषणापत्रों से जैसे गायब हैं बस 'जय जवान जय किसान ' जैसे नारो में हैं। एक मोबाइल फ़ोन भी बिना ६ महीने गूगल कर न लेने वाला युवा वोट करने के पहले १ घंटा भी जानकारी नहीं जुटता , देश के प्रति ये जस्बा तो विचलित कर देता है क्युकि ये ही ६५% आगे बहुमत होगा।
रुग्ण मानसिकता आज भी हावी है , वो मेरी जात का है। हम तो कोंग्रेसी / भाजपाई / सपाई / बसपाई है। कुछ नहीं बदलने वाला। सब एक ही हैं। क्या फर्क पड़ता है। जैसे तर्क देने वालो को कब किसी मनोवैज्ञानिक का सहारा मिलेगा , भगवान् ही जाने। पुश्तैनी वोटर बड़ा आश्चर्यचकित कर देते है , अंधभक्ति का परिसीमन किसी ने न किया होगा इसी लिए बढ़ती जा रही है। दो शासको के बीच बंटा मेरा देश छटपटा रहा है पर इसमें रेहने वालो को इसका कोई इल्म भी नहीं है। जो नेता ५ साल दिखाई भी न दे उसकी भरमाने एवं भड़काने वाली बातो में आ जाने वाले हम कुछ रुक कर सोचते भी नहीं। ५ साल में घर का रंग बदल देने वाले हम लोग नेता क्यों नहीं बदल देते? ६० साल पुरानी सड़ांध मारती पार्टियो को क्यों नहीं बदल देते ? क्यों इतनी निराशा है ? ये सवाल क्या नहीं पूछे जाना चाहिए।
अपराधिक प्रवृति वाले बलात्कारी, खुनी , डाकू , चोर , भ्रष्टाचारियो से समाज के डर से कोई सम्बन्ध भी न रखने वाले हम भारतीय कैसे उन्ही को अपना प्रतिनिधि बना कर भेज देते है ? अपनी कहूं तो मैं कैसे ३८% दागी प्रतनिधियों वाली एवं विकास का दावा करने वाली पार्टी को वोट दे दूँ , कुछ लोग समझने आए भी पर लगा उन्हें अपनी रुग्णता का उपचार करवाने कि जरुरत है क्युकी वे भ्रष्टाचार , सम्प्रदायिकता , और अन्य सभी कुरीतियो को एक अभिन्न अंग मानाने को मजबूर कर रहे थे । और ६० साल से ज्यादा शासन करने वाली पार्टी का काम क्या अब तक समझ नहीं आया। देश को नौकरियों के सृजन से ज्यादा नई विचारधारा के सृजन कि आवश्यकता है। नौकर बनाना किसी को पसंद नहीं है पर ८०% किसानो का पलायन रोक दे तो तो बहुत कुछ ठीक हो सकता है। कृषि को उत्कृष्ट होने कि जरुरत है। पर हमारे नेता तो उद्योगपति गामी है , पैसा जो वहाँ से मिलता है।कब हम मालिक बन के वोट करेंगे , जो कि हम हैं ।
बदलाव कि बात तो हो रही है और हमेशा से होती आई है पर क्या बदलना है ये सोचने का विषय है। सिर्फ सरकार/पार्टी बदलने के लिए वोट करे या देश बदलने के लिए वैसे इतिहास में देश बदलने के लिए वोट कम ही हुआ है। कुछ अतिउत्साही चुनाव के नतीजो को आंक कर वोट देते है न कि अपनी पसंद से , विश्वास के साथ कह सकता हु कि उन्हें अपने नेता के बारे में पूर्ण जानकारी होगी भी नहीं।
जो लोग मेरे इस लेख को पढ़े उनसे मेरी यही प्रार्थना है कि वोट उसे दें जिसपर भरोसा हो , जिसके साथ खड़े होने में शर्म न हो क्युकी वो और उसके सहयोगी दागी है , ईमानदारी भी मिल जाएगी , जरा ढूँढना पड़ेगा। जो हमारे रोजमर्रा के जीवन का सरलीकरण करे व गरीब को रिश्वत देने के लिए साहूकार से कर्ज न लेना पड़े। विकास कि बात तो करे पर ये भी बताए कैसे और किसका। महंगाई के मुद्दे पर चुनाव लड़ कर विपक्षी पार्टी द्वारा जारी कि गई कीमतो को वापस लेने का भी दावा करे . ये भी बताए कि कही खुद तो काले धन से काम नहीं कर रहा है , क्यों कि काला धन वापस लाना फिर उसके बस कि बात नहीं रह जाएगी . जाति तो कभी नहीं जाएगी पर कही देश हाथो से न चला जाए , अपराधियो के भड़काऊ भाषणो के पीछे भागने से कही ये अपराधीकरण कि आंच हमारी चौखट तक न आए। कृपया अपना वोट न बेचें , क्युकी चंद पैसो से आपके और आपके बच्चो के भविष्य कि कीमत नहीं लगाई जा सकती।
मुद्दे और नेता पहचाने , अच्छे चरित्र और विचारो को वोट दें !! धन्यवाद !!
जय हिन्द !!
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