बुधवार, 14 मई 2014

ज़रा सम्हल के

अब २४ घंटे से भी कम समय बाकी है। चुनाव में अपने मत का दान करने के के बाद मै भी कई और भारतीयोँ की  तरह अपने रोज़ी रोटी वाले काम कि तरफ़ बढ गया था, क्युकी दुर्भाग्यवश  ये किसी राजनीतिक दल कि नहीं हमारी स्वयम की ज़िम्मेदारी है। लग रहा था अब जो भी होगा वो १६ तारीख को पता चल ही जाएगा।  पर ये क्या, यहाँ तो पहले ही सरकार बना दि ग़ई  है , मंत्रिमंडल का गठन जारी है।  लोग अब भी इडियट बॉक्स के सामने बैठे हैं और अपने आप को तुष्ट करने वाले आंकड़े देख रहे हैं। पार्टियो  ने अपने न्यूज़ चैनल रुपी विज्ञापन बोर्ड अभी तक नहीं हटाए हैं, पर इससे कोइ फ़ायदा तो है नहीं ।

मै सोच रहा था कि कुछ ज़िम्मेदार चैनल तो कम से कम ये दिखाएंगे कि इस चुनाव में कितने प्रकार के मतदाताओं ने वोट किया है और उनकी आशाए क्या थीं , पर निराशा ही हाथ लगी। सब लोग सीटो के मायाजाल में एक बार फ़िर उलझ चुके हैं।  जो पत्रकार चुनाव के समय अपना वक़्त मतदाताओ के बीच बिता रहे थे वो फ़िर नेताओ कि तरह ही चुनाव के बाद मतदाताओ को भुल गए और खुद ही अपनी पसंदीदा पार्टी को सीटें बांटने लगे है।हमारे मुद्दे कहाँ हैं ? क्या ये हमारी समझ और समय का मज़ाक नहीं  है ?

जिस गति से हमारे मीडिया ने सरकार परीणाम पुर्व ही बना दी है , लगता है चुनाव आयोग की घोषणा के पहले ही ये कोइ जनहीत कि योजना भी लागु कर हि देगे।  पर क्यों न हो , जिनसे पिछले कुछ सालों मे मोटी कमाई कि है उनके प्रति ये निष्ठा का भाव होना भी चाहिए। चरित्र अभी इतना भी पतित नहीं हुआ है। सांप निकलने के बाद लाठी पीटना तो हमारी रगों में है। जब सब कहते है कि ये चुनाव पार्टियों ने नहीं मीडिया ने लडा है तो क्या परिणाम निकलने का श्रेय किसी और को लेने देंगें , कभी नही , हमारी चुनावी संस्कृति बदल चुकी है।  अब कई हजार करोड़ रूपये खर्च कर नेता बताते है की वो  महंगाई और ग़रीबी दूर करेंगे , कैसे करेँगे ये बताने मे कुछ हजार कऱोड और लगेंगे।  पर कैसे करेंगे ये क्यों बताए जब सिर्फ गरीबी  महंगाई हटाने के नारों से ही  सत्ता मिल जाए।

हम भारतियों को बड़ा हर्ष होता यदि हमारे पत्रकार कुछ और समय हम मतदाताओ के साथ बिताते , हमसे पुछते कि हमने क्यों वोट दिया , हमारी क्या उम्मीदें हैं।  इससे कम से कम नई सरकार में ये संदेश  तो जाता की वो जहां है वहाँ क्यों भेजा गया है , अगर अगली बार वोट माँगने आएं तो क्या काम करवाने हैं।   पर कहाँ, मिडिया तो परिणाम बताने में लगा है।  कृपया याद  रक्खे इस बार ६०% युवाओ ने वोट किया है जो अच्छे परिणाम चाहते है और सरकार और मीडिया के चरित्र को  बारीकी से परखने  वाले  है।  हम घोषणापत्र ले कर बैठे  है इस बार , जरा रुकिए और आगे थोड़ा सम्हाल कर चलिए आगे डगर मुश्किल हो सकती है . भ्रष्ट लोगो कि उम्मीद अब बहके  हुए यूवा हैँ जिनकी संख्या भी  दिन ब दिन कम हो  जा रही है। लोग जुड़ने लगे है , बोलने लगे हैं।  फिर कहता हूँ , ज़रा सम्हल के। 





शनिवार, 3 मई 2014

मतदान दिवस का अनुभव

१६ मई का अब इंतज़ार नही होता !!  मध्यप्रदेश में जब से मतदान खत्म हुए हैं , हमारे नेताओँ  कि तरह हि उनके समर्थक भी ग़ायब हैं। मेरे लिए कुछ नहीं बदला , आज भी एक पार्टी के समर्थन में सोशल मीडिया में पोस्ट करता हूँ पर अब कोई  अपने कुतर्क लेकर नहीं आता।  ऐसा लगता है की लड़ाई विचारधारा कि तो कभी थी हि नहिं , लोगों को बरगलाना था सो वो कोशिश कर रहे थे।  शायद कुछ पैसा भी मिला हो , कौन जाने।

मेरे लिए मतदान दिवस बड़ा कठिन रहा लगा कि स्वतंत्रता संग्राम का एक सिपाही हूँ।  आवागमन के बहुत कम साधनों के बीच मैने घर जा कर मतदान  करने की ठानि थी और ६ से ७ घंटे की कष्टप्रद यात्रा के बाद आखिर मैने अपने वोट कि पूर्णाहुति दे हि दि।  मेरे घर में ही हर पार्टी के वोटर देख ख़ुशी भी  बहुत हूई क्यूँकि देश मे हो न हो मेरे परिवार मे विचारों कि अभिव्यक्ति कि पुरी  स्वतंत्रता है. ९ सदस्यों के  संयुक्त परिवार मे से हर पार्टी को वोट गया बिना किसी कुतर्क के , घर में हि डिबेट भी की। काश मेरा देश भी  मेरे घर कि तरह होता।

शाम होते होते कई लोगों से मिला तो कहने लगे कि क्या अपना पैसा लगा के सिर्फ़ वोट डालने आए हो ? बड़ी निराशा हुई कि ये लोग कितने हताश है और मतदान  के महत्त्व से कितने अनजान हैं।  बस में बैठे-बैठे भी बस लोगो के हाथ कि उँगली पर वोटिंग का निशान ढूंढता रहा पर एक न मिला। शाम को कई लोग ऐसे भी मिले जिन्होने अपना वोट बेचा था।  लगा की ये लोग क्या हमारे देश के लिए पाकिस्तान से बड़ा खतरा नहीं  हैं , जरूर है क्युकि चन्द रुपयों के लिये इन्होने कई  लोगों का भविष्य बेच दिया , मै तो शर्मसार हुँ एसे लोगों  का परिचित कहलाकर।

कुछ निराशाओं के बीच आशाए भी हैं।  लग रहा है की अगले चुनाव तक बहुत कुछ बदलने वाला है क्युकी इस चुनाव का परिणाम बड़ा ही प्रेरणास्पद और रोचक होगा।  नेताओ और वोटरों के लिये भी ये समय सिखने का है क्यूकि कइयों के घ्रणित चेहरे उजागर हुए है और अगले ५ साल तक होते रहेंगे।

देखते रहिए और सीखते रहिए क्यूँकि युवा वोटर  ही हमारे भविष्य के वोटिंग पैटर्न का रचयिता होगा।

गुरुवार, 1 मई 2014

कुछ पंक्तिया जिन्हो ने दिल को छुआ।

कुछ पंक्तियाँ , अच्छी लगी, किसी भावुक व्यक्ति ने सुनाई।  पंक्तियों से ज्यादा उनकी आँखों के आंसुओ ने दिल को छुआ।

१. कौम को कबीलों मे मत बाँटों , ये जिंदगी क सफ़र लंबा है इसे मीलो में मत बांटों।
   हमारा भारतवर्ष तो एक अथाह सागर है , इसे ताल और झीलों  में  मत बाँटों।


२.   दिल तो भावों से भरा है मगर घर है कि अभावों से भरा है।
      जी चाहता है कि दिल जोड़ लूँ सबसे मगर ये जिस्म है कि घावों से भरा है।