अब २४ घंटे से भी कम समय बाकी है। चुनाव में अपने मत का दान करने के के बाद मै भी कई और भारतीयोँ की तरह अपने रोज़ी रोटी वाले काम कि तरफ़ बढ गया था, क्युकी दुर्भाग्यवश ये किसी राजनीतिक दल कि नहीं हमारी स्वयम की ज़िम्मेदारी है। लग रहा था अब जो भी होगा वो १६ तारीख को पता चल ही जाएगा। पर ये क्या, यहाँ तो पहले ही सरकार बना दि ग़ई है , मंत्रिमंडल का गठन जारी है। लोग अब भी इडियट बॉक्स के सामने बैठे हैं और अपने आप को तुष्ट करने वाले आंकड़े देख रहे हैं। पार्टियो ने अपने न्यूज़ चैनल रुपी विज्ञापन बोर्ड अभी तक नहीं हटाए हैं, पर इससे कोइ फ़ायदा तो है नहीं ।
मै सोच रहा था कि कुछ ज़िम्मेदार चैनल तो कम से कम ये दिखाएंगे कि इस चुनाव में कितने प्रकार के मतदाताओं ने वोट किया है और उनकी आशाए क्या थीं , पर निराशा ही हाथ लगी। सब लोग सीटो के मायाजाल में एक बार फ़िर उलझ चुके हैं। जो पत्रकार चुनाव के समय अपना वक़्त मतदाताओ के बीच बिता रहे थे वो फ़िर नेताओ कि तरह ही चुनाव के बाद मतदाताओ को भुल गए और खुद ही अपनी पसंदीदा पार्टी को सीटें बांटने लगे है।हमारे मुद्दे कहाँ हैं ? क्या ये हमारी समझ और समय का मज़ाक नहीं है ?
जिस गति से हमारे मीडिया ने सरकार परीणाम पुर्व ही बना दी है , लगता है चुनाव आयोग की घोषणा के पहले ही ये कोइ जनहीत कि योजना भी लागु कर हि देगे। पर क्यों न हो , जिनसे पिछले कुछ सालों मे मोटी कमाई कि है उनके प्रति ये निष्ठा का भाव होना भी चाहिए। चरित्र अभी इतना भी पतित नहीं हुआ है। सांप निकलने के बाद लाठी पीटना तो हमारी रगों में है। जब सब कहते है कि ये चुनाव पार्टियों ने नहीं मीडिया ने लडा है तो क्या परिणाम निकलने का श्रेय किसी और को लेने देंगें , कभी नही , हमारी चुनावी संस्कृति बदल चुकी है। अब कई हजार करोड़ रूपये खर्च कर नेता बताते है की वो महंगाई और ग़रीबी दूर करेंगे , कैसे करेँगे ये बताने मे कुछ हजार कऱोड और लगेंगे। पर कैसे करेंगे ये क्यों बताए जब सिर्फ गरीबी महंगाई हटाने के नारों से ही सत्ता मिल जाए।
हम भारतियों को बड़ा हर्ष होता यदि हमारे पत्रकार कुछ और समय हम मतदाताओ के साथ बिताते , हमसे पुछते कि हमने क्यों वोट दिया , हमारी क्या उम्मीदें हैं। इससे कम से कम नई सरकार में ये संदेश तो जाता की वो जहां है वहाँ क्यों भेजा गया है , अगर अगली बार वोट माँगने आएं तो क्या काम करवाने हैं। पर कहाँ, मिडिया तो परिणाम बताने में लगा है। कृपया याद रक्खे इस बार ६०% युवाओ ने वोट किया है जो अच्छे परिणाम चाहते है और सरकार और मीडिया के चरित्र को बारीकी से परखने वाले है। हम घोषणापत्र ले कर बैठे है इस बार , जरा रुकिए और आगे थोड़ा सम्हाल कर चलिए आगे डगर मुश्किल हो सकती है . भ्रष्ट लोगो कि उम्मीद अब बहके हुए यूवा हैँ जिनकी संख्या भी दिन ब दिन कम हो जा रही है। लोग जुड़ने लगे है , बोलने लगे हैं। फिर कहता हूँ , ज़रा सम्हल के।
मै सोच रहा था कि कुछ ज़िम्मेदार चैनल तो कम से कम ये दिखाएंगे कि इस चुनाव में कितने प्रकार के मतदाताओं ने वोट किया है और उनकी आशाए क्या थीं , पर निराशा ही हाथ लगी। सब लोग सीटो के मायाजाल में एक बार फ़िर उलझ चुके हैं। जो पत्रकार चुनाव के समय अपना वक़्त मतदाताओ के बीच बिता रहे थे वो फ़िर नेताओ कि तरह ही चुनाव के बाद मतदाताओ को भुल गए और खुद ही अपनी पसंदीदा पार्टी को सीटें बांटने लगे है।हमारे मुद्दे कहाँ हैं ? क्या ये हमारी समझ और समय का मज़ाक नहीं है ?
जिस गति से हमारे मीडिया ने सरकार परीणाम पुर्व ही बना दी है , लगता है चुनाव आयोग की घोषणा के पहले ही ये कोइ जनहीत कि योजना भी लागु कर हि देगे। पर क्यों न हो , जिनसे पिछले कुछ सालों मे मोटी कमाई कि है उनके प्रति ये निष्ठा का भाव होना भी चाहिए। चरित्र अभी इतना भी पतित नहीं हुआ है। सांप निकलने के बाद लाठी पीटना तो हमारी रगों में है। जब सब कहते है कि ये चुनाव पार्टियों ने नहीं मीडिया ने लडा है तो क्या परिणाम निकलने का श्रेय किसी और को लेने देंगें , कभी नही , हमारी चुनावी संस्कृति बदल चुकी है। अब कई हजार करोड़ रूपये खर्च कर नेता बताते है की वो महंगाई और ग़रीबी दूर करेंगे , कैसे करेँगे ये बताने मे कुछ हजार कऱोड और लगेंगे। पर कैसे करेंगे ये क्यों बताए जब सिर्फ गरीबी महंगाई हटाने के नारों से ही सत्ता मिल जाए।
हम भारतियों को बड़ा हर्ष होता यदि हमारे पत्रकार कुछ और समय हम मतदाताओ के साथ बिताते , हमसे पुछते कि हमने क्यों वोट दिया , हमारी क्या उम्मीदें हैं। इससे कम से कम नई सरकार में ये संदेश तो जाता की वो जहां है वहाँ क्यों भेजा गया है , अगर अगली बार वोट माँगने आएं तो क्या काम करवाने हैं। पर कहाँ, मिडिया तो परिणाम बताने में लगा है। कृपया याद रक्खे इस बार ६०% युवाओ ने वोट किया है जो अच्छे परिणाम चाहते है और सरकार और मीडिया के चरित्र को बारीकी से परखने वाले है। हम घोषणापत्र ले कर बैठे है इस बार , जरा रुकिए और आगे थोड़ा सम्हाल कर चलिए आगे डगर मुश्किल हो सकती है . भ्रष्ट लोगो कि उम्मीद अब बहके हुए यूवा हैँ जिनकी संख्या भी दिन ब दिन कम हो जा रही है। लोग जुड़ने लगे है , बोलने लगे हैं। फिर कहता हूँ , ज़रा सम्हल के।
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