शनिवार, 3 मई 2014

मतदान दिवस का अनुभव

१६ मई का अब इंतज़ार नही होता !!  मध्यप्रदेश में जब से मतदान खत्म हुए हैं , हमारे नेताओँ  कि तरह हि उनके समर्थक भी ग़ायब हैं। मेरे लिए कुछ नहीं बदला , आज भी एक पार्टी के समर्थन में सोशल मीडिया में पोस्ट करता हूँ पर अब कोई  अपने कुतर्क लेकर नहीं आता।  ऐसा लगता है की लड़ाई विचारधारा कि तो कभी थी हि नहिं , लोगों को बरगलाना था सो वो कोशिश कर रहे थे।  शायद कुछ पैसा भी मिला हो , कौन जाने।

मेरे लिए मतदान दिवस बड़ा कठिन रहा लगा कि स्वतंत्रता संग्राम का एक सिपाही हूँ।  आवागमन के बहुत कम साधनों के बीच मैने घर जा कर मतदान  करने की ठानि थी और ६ से ७ घंटे की कष्टप्रद यात्रा के बाद आखिर मैने अपने वोट कि पूर्णाहुति दे हि दि।  मेरे घर में ही हर पार्टी के वोटर देख ख़ुशी भी  बहुत हूई क्यूँकि देश मे हो न हो मेरे परिवार मे विचारों कि अभिव्यक्ति कि पुरी  स्वतंत्रता है. ९ सदस्यों के  संयुक्त परिवार मे से हर पार्टी को वोट गया बिना किसी कुतर्क के , घर में हि डिबेट भी की। काश मेरा देश भी  मेरे घर कि तरह होता।

शाम होते होते कई लोगों से मिला तो कहने लगे कि क्या अपना पैसा लगा के सिर्फ़ वोट डालने आए हो ? बड़ी निराशा हुई कि ये लोग कितने हताश है और मतदान  के महत्त्व से कितने अनजान हैं।  बस में बैठे-बैठे भी बस लोगो के हाथ कि उँगली पर वोटिंग का निशान ढूंढता रहा पर एक न मिला। शाम को कई लोग ऐसे भी मिले जिन्होने अपना वोट बेचा था।  लगा की ये लोग क्या हमारे देश के लिए पाकिस्तान से बड़ा खतरा नहीं  हैं , जरूर है क्युकि चन्द रुपयों के लिये इन्होने कई  लोगों का भविष्य बेच दिया , मै तो शर्मसार हुँ एसे लोगों  का परिचित कहलाकर।

कुछ निराशाओं के बीच आशाए भी हैं।  लग रहा है की अगले चुनाव तक बहुत कुछ बदलने वाला है क्युकी इस चुनाव का परिणाम बड़ा ही प्रेरणास्पद और रोचक होगा।  नेताओ और वोटरों के लिये भी ये समय सिखने का है क्यूकि कइयों के घ्रणित चेहरे उजागर हुए है और अगले ५ साल तक होते रहेंगे।

देखते रहिए और सीखते रहिए क्यूँकि युवा वोटर  ही हमारे भविष्य के वोटिंग पैटर्न का रचयिता होगा।

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