गुरुवार, 27 मार्च 2014

वोटर और कार्यकर्ता

चुनाव आते -आते लग रहा है वादों का स्तर तो बढ़ रहा है पर राजनीती और व्यक्तियो का स्तर दिन ब दिन गिरता ही जा रहा है।  छींटाकशी का दौर है ,  कोई किसी को चोर केहता है तो कोई किसी को पाकिस्तानी एजेंट।  एके -४९ और नमो-५६ के बीच आम नागरिक बड़े भ्रम में है , पर ये भ्रम नया कहाँ  है मै  तो जब से थोडा समझने लगा तब से देख रहा हूँ . वोटर कि  मनोस्थिति  को नमो-स्थिति  में लाने के ये प्रयास सराहनीय तो नहीं है , क्युकी विचारधाराओ का स्वछंद विचरण ही असल लोकतंत्र का परिचायक है।  मतदाता किसी एक विचारधारा को अपनाए और अगले पांच साल फिर कही भीड़ में गुम  हो जाए. ये भी कमाल ही है न कि एक भारतीय नागरिक चुनाव आते ही मतदाता हो जाता है वर्ना उसकी एक नागरिक के रूप में पहचान  सिर्फ भीड़ का हिस्सा ही तो है . जब कोई कार्यकर्ता जिसे कई बार कई कारणो से असामाजिक तत्व पाया , हमारे घर के दरवाजे पर वोट मांगने आता है अपने पवित्र नेताजी के लिए तो समझ नहीं आता किस भावना से वोट दें।  डर  तो लगता ही है . पर विकल्प ही क्या है।

 वोटर और कार्यकर्ता में मुझे थोडा संशय है। पुश्तैनी वोटर सुनकर चकित हो जाता हूँ , मुझे तो लगता था कि सिर्फ कार्यकर्ता वफादार होता है , राष्ट्र विरोधी गतिविधियो के बाद भी अपनी पार्टी से प्यार करता है (देश से नहीं ) . मगर जब अपने मित्रो से वोट देने के बारे में विचार जाने तो कुछ पीढ़ियों से पार्टी भक्ति करते परिवारो से निकले , समझ नहीं आता लोग ऐसा क्यों केहते है कि शिक्षा से समझ आती है।  ऐसे वोटरो का वोट कोई लहर नहीं देखता बस परिवार देखता है , देश से इन्हे क्या। शक तो होता है कोई नई  ईमानदार पार्टी पिछले ६६ सालो में पनप क्यों नहीं पाई , पनपने ही नहीं  दिया गया या हमारे देश  से ईमानदारी अंग्रेजो के साथ चली गई थी , सोचने वाली  बात तो लगती है।

एके ४९ कि बात करे तो मुझे हिम्मत दिखती है , कद्दावर शब्द को चुनौती दे डाली है। सवाल पूछ पूछ कर नाक में दम कर रक्खा है , पता नहीं कहाँ से दस्तावेज भी ले आता है हमारी सीबीआई को तो कभी न मिले थे ये , न ही धुरविरोधी कांग्रेस या बीजेपी को।  शक तो तब होता है जब कोई जवाब देने भी नहीं आता , सवाल जवाब तो लोकतंत्र का बहुत ही जरूरी अंग होना चाहिए। बेचारे वफादार कार्यकर्ताओ को छोड़ रखा है जो बस  झाकते है।  कभी तो केहते है ईमानदार व्यवस्था कभी हो ही नहीं सकती और कभी दूसरी पार्टी ज्यादा बुरी है हम कम बुरे है बताने में लगे है।  कभी तीखा सवाल आजाए तो केहते है उनसे सवाल क्यों नहीं पूछते , अरे भाई उनसे भी पूछ लेंगे पहले जवाब तो दो , पर नहीं।  कई सवाल अँधेरे में है और लग रहा है चुनाव तक रहेंगे , और हमारा अंधभक्त वोटर ठप्पा लगा आएगा , और जो अंधभक्त नहीं है वो इस आस में कि अगले ५ साल में शायद जवाब मिले कम बुरे को चुनेगा (कम बुरे से मतलब ज्यादा मौका नहीं मिला लूटने का ) .

सवाल पूछने वाले भी सावधान रहे , कही स्याही और अंडे न  पड़ जाए. काले झंडे पहली बार बाहर निकले है , पहले इस तरह का विरोध तो नहीं हुआ था , दोनों पार्टिया खुश थी शांति से एकदूसरे ही झूठी बुराई कर के काम चल रहा था , बड़ा भाईचारा था।  हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर वोटर बाटना भी क्या कला थी / है।  सेक्युलर वोटर बड़ा खतरनाक है (देश हित में नहीं  ), उसे जाती में बांटने से वो ये भी नहीं देख पाता कि जिस  हिंदूवादी पार्टी का वो भक्त है उसी के लोग पवित्र हिन्दू मंदिर के बाहर अंडे और गालिया फेंक रहे है।  ये ही तो अंधभक्ति है। वो ये भी नहीं देखता कि मुसलमान समुदाय का ६० साल से पीछे होना किसकी देन है।

मेरे जैसा भी एक वोटर है जो बस काश में  जी रहा है।  काश मुझे सवालो के जवाब मिलते , मेरा गाव अब भी क्यों पीछे है ? नालिया , स्ट्रीट लाइट  क्या होती है वहाँ  जा कर कोई परिभाषित करे . हवा से चल रही है क्या सब पार्टियाँ ? पैसे का हिसाब मांगना क्या गलत है जब नेता हमें मालिक बोलते है?  मेरा टैक्स का पैसा कहाँ लग रहा है ? देश में महंगाई के मुद्दे पर चुनाव लड़ने वाले नेताओ को अरबो रूपये अपने मार्केटिंग में खर्च करने में क्या कोई शर्म आती है ? नेता को सबसे ज्यादा डर जनता से क्यों लगता है, सामना क्यों नहीं करते ? और फिर पांच साल  अंतर्ध्यान रहने के बाद किस मुह से वोट माँगने आजाते हो ?

बड़े दिल  वाली है मेरे  देश कि जनता , खुद देश लुटवाने हो तैयार है बिना किसी तैयारी के अपने जीवन के पांच साल किसी के हवाले कर रही है । अंग्रेज क्या बुरे थे ?



शुक्रवार, 21 मार्च 2014

किसकी सोच ?




आजकल खूब चल पड़ा है। मीडिया को गाली देना, लगता है नया सा है , पर फिर मैंने सोचा क्या सचमुच नया सा है?  इमर्जेंसी , मनसे एवं शिवसेना द्वारा मीडिया हाउस में तोड़फोड़ , उत्तरप्रदेश में तो प्रसारण ही रोक देना क्या ये सब गाली के प्रतीक नहीं है या उससे भी ज्यादा , एक कदम आगे।  कौन केहता है भारत पिछड़ गया है।  मीडिया भी क्या करे, हमारे हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट को तो केस निबटाने  कि फुर्सत नहीं तो मीडिया खुद ही निबटाता है।  सही भी है २० २५ साल कौन प्रतीक्षा करेगा , कइयो का तो रिटायरमेंट आ जाएगा .

सच तो ये है कि मीडिया भी बेशरम  या बेरहम हो गया है , खबरो के नाम पर विज्ञापन चला रहे  है और लगता है सारी खबरे चार महानगरो में सिमट के रह गई है। बताया गया था ८०% भारत गाँव  में बसता है मगर समाचारो में तो १% भी नहीं है , क्या ग्रामीण क्षेत्र ज्यादा उपयुक्त है जीवन गुजरने के लिए ? कुछ भी अच्छा -बुरा नहीं  होता , या अब वहाँ कोई  नहीं रहता? क्षेत्रीय अखबार तो जैसे अपने राज्य के मुख्यमंत्री एवं रुलिग पार्टी का   प्रशस्ति गान करने बैठे है , जो बुराइया एक नागरिक देखता है वो मीडिया क्यों नहीं देखता क्या ये भी हमारे कानून कि तरह अँधा हो गया है।

कुछ नेता आए है , केहते है डेवलपमेंट करेंगे, पर किसका ? देश को किसी कॉर्पोरेट कंपनी कि तरह चलने का वादा बड़ा लुभा रहा है , समझ नहीं आता कब कोई   हमारे सामाजिक विकास की बात करेगा . बोलते है हमारा देश एक युवा देश है , पर  जो दीखता है उससे लगता है कि भटके हुए युवाओ का देश है। आज  जहाँ सारी  जानकारी और  इतिहास हमारे हाथो में है और कुछ मिनिटो में सारी जानकारी हासिल कि जा सकती है ,वहाँ हम इडियट बॉक्स देख रहे है जो बस भरमा रहा है।  किसी होटल में पसंदीदा खाने कि तरह खबर परोसी जा रही है , जो आपकी मानसिकता को तुष्ट करे ऐसी खबर देखो।  कमाल है खबर में भी एकरसता न रही , खबर कैसे अलग हो सकती है ?

६० सालो में तो दुनिया बदल जाती है पर हमारी सोच क्यों नहीं बदली ? फूट डालो शासन करो २६० साल पुराना हो गया पर अब भी क्या काम करता है हम भारतीयो पर।  जाती धर्म के नाम पर किसी को भी मारने और मरने पर उतारू हम भारतीय गर्व कैसे कर लेते है ये शोध का विषय  होना चाहिए।

समाचार भी अभिव्यक्ति का साधन बन चूका है पर सिर्फ कुछ नेताओ  पूंजीपतियो को ही ये   अधिकार प्राप्त है और जो  लोग सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति करना चाहते है उन्हें रोकने का प्रयास कितनी बार किया जा रहा है , धन्य है भारत सरकार।   विशुद्ध खबर न जाने कहाँ खो गई , सोच का निर्माण करना भी एक कला है , तो क्या न्यूज़ रिपोर्टर भी अभिनेता हो गए  है. नेता और अभिनेता का ये संगम कमाल है , नेता करवाता है और अभिनेता अभिनीत करता है , वाह्ह !! .
जब मेरे आस पास के लोगो से बात करता हु तो उनकी भाषा और विचार  शब्दशः वही होते है जैसे कि हमारा समाचार अभिनेता बोलता है, लगता है मेरे देश के लोगो के पास रुक कर सोचने का भी समय नहीं है . युवा अपनी भागदौड़ में सोचने का काम भी आउटसोर्स कर चूका है .

केजरीवाल ने जब मीडिया को आइना दिखाया तो अपनी ही शक्ल देख के घबरा और बौरा गया और किसी छोटे से बच्चे कि तरह बदले कि आग में जलने लगा।   सोच कर भी विचित्र लगता है कि मीडिया , हमारे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बदले जैसी अपरिपक्व हरकत भी कर सकता है।   बदला लेने कि ये कार्यवाही ही केजरीवाल के दावो को बल दे रही है , पर ये बात सोचने से ही समझ आती है।   आउटसोर्स कि गई सोच में ये ख़याल कैसे आएगा , वो ये कभी नहीं सोचेगी कि जिन राजनीतिक पार्टियो का बीजेपी विरोध कर रही थी उन्ही के गुंडामण्डित छवि के लोगो को गले लगा कर खुद को पहले वाली सरकार जैसा बना रही है।   सुना था जहर ही जहर को काटता है तो क्या ये काला पैसा जो चुनाव में लगा है ये ही काले पैसे को भारत वापस लाएगा . आरोप नहीं लगा रहा हु , अँधेरा  भी काला ही होता है और जहां कुछ न दिखे वो अँधेरा ही तो है . मीडिया और नेताओ के सामूहिक कृत्य से ये चुनाव अँधेरे में ही लड़ा जायेगा , बड़े दुःख  कि बात है।

हमें सैकड़ो सालो से दुसरो कि सोच जीने कि आदत है , पहले मुगलो कि , फिर अंग्रेजो कि और अब मीडिया कि।   खुद कि सोच बनाने कि छटपटाहट से मै तो जीत गया पर हमारा युवा देश जो इडियट बॉक्स के सामने बैठ कर अपने आउटसोर्स हुए काम का अवलोकन कर रहा है , उसका वोट तो देश के लिए एक आतंकी हमले सा प्रतीत होता है।  

ध्यान से देखो , खुली आँखों में के इस अँधेरे को . ६० सालो में क्या हुआ और किस चहरे के पीछे कौन है .

मंगलवार, 18 मार्च 2014

लहर और मीडिया

आम चुनाव से पहले क्या देश में बीजेपी की लहर है? अगर आप टीवी चैनलों को देखें, तो यह हर नए दिन एक व्यक्ति को निर्णायक और करिश्माई व्यक्तित्व के रूप में दिखाता है, जिसके पास देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करने और अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाई पर ले जाने का नक्शा तैयार है. लेकिन क्या यह सच है या फिर एक व्यक्ति को मृग मरीचिका बनाने के लिए मीडिया द्वारा तैयार किया गया हौवा है, जिसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा बेदाग घोषित करने के बावजूद खुद पर लगे 2002 के गुजरात दंगे का धब्बा ढोना होगा.

16 मई को ही यह तय होगा कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे या नहीं. लेकिन इस वक्त जो बात लोगों को परेशान कर रही है, वह मीडिया या फिर इलेक्ट्रानिक मीडिया के कुछ हिस्से द्वारा मोदी का किया जा रहा महिमामंडन है. इसमें कोई शक नहीं कि मोदी एक निर्णायक और कुशल नेता के रूप में सामने आए हैं जो देश के आर्थिक परिदृश्य को बदल सकता है, जैसा कि वह खुद हिंदुत्व की अपेक्षा विकास पर ध्यान दिए जाने की जरूरत पर बल देते हैं.

लेकिन यह छिपा हुआ तथ्य भी है कि मोदी 2002 के दंगे के दाग को मिटाने के लिए जनता के बीच अपनी छवि बनाने के लिए काम कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि सात रेस कोर्स रोड का रास्ता इतना आसान नहीं होगा? ब्रांड मोदी नए और पुराने मीडिया की रचना है. सोशल मीडिया पर मोदी एक ब्रांड हैं. ट्विटर पर उनके 35 लाख से अधिक फॉलोअर हैं, जबकि फेसबुक पर 1.1 करोड़ प्रशंसक हैं.

लेकिन यह पुरानी खबर है. मोदी का मीडिया किस तरह प्रचार कर रही है. मोदी के पीएम बनने की राह में एकमात्र खतरा नई पार्टी आम आदमी पार्टी (आप) है. कांग्रेस जहां डूबता जहाज लग रही है और इसके कई वरिष्ठ नेता राजनीति का स्वाद नहीं चखना चाहते, न ही तीसरा मोर्चा में कोई मजबूत नेता नजर आया है.
बीजेपी के लिए 'आप' ही एकमात्र खतरा है और मीडिया सही या गलत तरीके से इसके संस्थापक अरविंद केजरीवाल को बदनाम कर रही है. यह माना हुआ तथ्य है कि मीडिया एक महत्वपूर्ण हथियार है जो जनता के मन को बदल सकती है, लेकिन क्या सिर्फ एक नेता के पक्ष में बात करना उचित है?

केजरीवाल की उस बात से सहमत नहीं हुआ जा सकता जिसमें उन्होंने मोदी का प्रचार करने के लिए मीडिया को जेल भेजने की बात कही थी, लेकिन उन्होंने मीडिया की प्रासंगिकता पर सवाल उठाया है कि क्या मीडिया प्रासंगिक है?

इस सवाल का जवाब सिर्फ मीडिया ही दे सकती है और यह कठिन होगा. लेकिन मीडिया खासकर टेलीविजन चैनल यह महसूस नहीं कर रहे कि केजरीवाल पर रोजाना किए जा रहे प्रहार से इसकी विश्वसनीयता प्रभावित हो सकती है.

क्या मीडिया बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए द्वारा 2004 में चलाए गए इंडिया शाइनिंग प्रचार को भूल गई? पूरा अभियान बीजेपी पर भारी पड़ गया और कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए की सरकार सत्ता में आई थी.

शुक्रवार, 7 मार्च 2014

नारी कि शक्ति !!

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सभी महिलाओ को शत शत प्रणाम !! भारतीय संस्कृति में नारी के महत्त्व को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता।  माँ कि बहुत याद आ रही है सुबह उठ कर सबसे पहले फ़ोन लगाया , बधाई सुन कर बड़े अनमने अंदाज में उन्होंने सुना और फिर से मेरी फिक्र में लग गई , हमेशा से गर्व करता हु कि कैसे पिछले ३० सालो से बगैर किसी छुट्टी के काम में लगी है। छोटी छोटी बातो पे खुश हो जाती है , सीखने लायक बात है।  यहाँ तो बड़ी बड़ी बाते भी ख़ुशी नहीं देती , सकारात्मकता पे नकारात्मकता हावी है।  शायद इस सकारात्मकता में माँ का साथ नहीं इसलिए नकारात्मक लगाती है।  जब घर से लौटता हु तो मेरे बॉस कि तरह डेडलाइन पर बात  करती है , लौटने कि डेडलाइन।  और डेडलाइन को पूरा न करो तो बड़ी निराश हो जाती है। मेरे बचपन के किस्से ही अब एक कहानियो कि किताब है , कितना बारीकी से देखा है।  एक अलग पहलू दीखता है जब भी सुनाता हु।
 अच्छा लगता है कि पिताजी से ये सीखा कि महिलाओ कि बहुत इज्जत करनी चाहिए, कभी झगड़ा होते नहीं देखा मैंने और मेरी छोटी बहिन ने ।जब दूसरे दम्पत्तियो को झगड़ते देखते है तो लगता है कुछ तो गलत हुआ है और हम एक पेरफ़ेक्ट कपल कि संताने है। अभी अभी शादी हुई है पत्नी से खूब झगड़ा भी होता है , शायद इस लिए कि हम अपने अपने माता पिता कि तरह क्यों नहीं है , पर अब लगता है कि ये छोटी छोटी कहा सुनी भी एक प्रेम का प्रतीक ही है।
 ऐसे लोगो से मिला जिन्होंने नारी के बारे में बड़ी छोटी बात कि तो लगा इनके पिताजी कि गलती होगी। महिलाओ से हिंसा करने वाले कितने क्रूर होंगे। गुस्सा आता है जब ही कोई घ्रणित घटना सुनाता हु। सड़क पैर कई लोगो को देख लगता है कि क्यों बलात्कार होते है और कौन बलात्कारी हो सकते है। चिड़ियाघर कि तरह कोई बलात्कारी घर भी बना दो जहा राह चलते इन विक्षिप्त लोगो को रखा जा सके और लोग अपने बच्चो को बताए कि ऐसा नहीं बनाना है।   अरे भाई अब तो सबका फेवरट आमिर खान भी केह रहा है , अब तो सुधर जाओ।
कानून बनाने से सब कुछ ठीक हो जाएगा , ऐसा बोलते है सब।  त्वरित निर्णय और सजा ही समाधान है।  पर मुझे लगता है कि अगर मेरे पिता कि तरह अगर हर पिता अपने बच्चो को नारी कि महिमा एवं महत्तव का पाठ पढ़ाए तो उदाहरण  हर घर में मिल जाएगा और बच्चा बड़ा होकर इंसान बनेगा। नारी शक्ति का प्रतीक है और उसे और शक्तिशाली बनाए हम।  कम  पत्नी तो शक्ति का बहुत  बड़ा प्रतीक है ही , सब जानते है और मानते भी है।

बुधवार, 5 मार्च 2014

पत्थरो कि भाषा!!

आज कुछ लिखने का मन किया , हिंदी में!! सोचा देखे एक ब्लॉग शुरू कर सकते है या नहीं , आपकी आलोचना के लिए तैयार हु . अच्छा रहा तो ये अच्छी आदत (निंदा कि नहीं , लिखने कि )को डेवेलोप करूँगा -

आज सुबह के न्यूज़ पेपर पढ़ रहा था .. सब आम आदमी पार्टी को रावण और बीजेपी को राम दिखा रहे है , सही भी है वरना मध्यप्रदेश में BJP कि सरकार को क्या जवाब देंगे . सुबह सुबह रामायण का ये चरित्र चित्रण देख कर दंग  रह गया क्युकी सोशल एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर मैंने सब कुछ देखा है , दोनो पहलु !! मोदी को जीतना है किसी भी कीमत पर , बस ये ही एक धेय्य है . गुजरात कि सीमाए सील क्यों नहीं कर देते , मोदी बोलने पर अर्थदंड भी लगा दो .
इंदौर से हु और हमेशा से गुंडों और नेताओ कि तस्वीरे पुरे शहर में देख कर विचलित हो जाता हु . नेता जनता का प्रतिबिम्ब होना चाहिए पर क्या इंदौर कि सारी जनता गुंडा समर्थक है ? नहीं कोई नहीं . मीडिया ने अभी अभी ये मुद्दा उठाया तो पुलिस ने भी कुछ पाकेटमारों जिनका कोई आका नहीं है को पकड़ कर खाना पूर्ति तो कर ही दी है . कुछ बड़े गुंडों को पकड़ा तो फ़ोन  घनघना उठे और वो गुंडा विजय पताका ले के थाने से बहार आ गया .
अब अमिताभ बच्चन जी कि बात मानाने का मन नहीं करता , "कुछ दिन कैसे गुजारे गुजरात में ?" गाइडलाइन भी बता दो . बच्चो सा हठ है बीजेपी समर्थको में , जिद पकड़े है कि मोदी ही चाहिए वरना शायद अपना सर दीवार से न ठोक ले. इस घटना से सवाल तो कई उठते है, क्या छुपा रहे हो गुजरात में ? बता दो शायद हम भी कुछ दिन गुजार ले.

धन्यवाद ,
अर्पित व्यास ,एक युवा , उम्र २८ साल